आज मेरी सुबह हुई उस्ताद अब्दुल रशीद खान की "काहे को गरबा किनो" ठुमरी के साथ।वैसे तो इन्होंने ४००० ठुमरियाँ से ज़्यादा की रचना की लेकिन यह ठुमरी उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय ठुमरियों में से एक है।"रसन पिया" के नाम से मशहूर उस्ताद अब्दुल रशीद खान ख़याल और ठुमरी के साथ-साथ ध्रुपद और धम्मार भी गाया करते थे।इन्होंने अपने संगीत की तालीम उस्ताद बड़े यूसुफ़ खान और उस्ताद छोटे यूसुफ़ खान से ली थी और उस्ताद अब्दुल रशीद खान हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरातन घराना "ग्वालियर" घराने से आते थे।इनको अपने १०८ वर्ष के जीवन में कई पुरुष्करों से नवाज़ा जा चुका है।आई॰टी॰सी अवार्ड,संगीत नाटक अकैडमी अवार्ड,रस सागर अवार्ड,पद्म भूषण ये सारे अवार्ड इन्होंने अपने १०८ वर्षीय संगीतमय जीवन में प्राप्त किए।एक और ख़ास बात बताना चाहूँगा यहाँ उस्ताद अब्दुल रशिद खान सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति हैं जिन्हें पद्म भूषण से
सम्मानित किया गया हो।
इसी वर्ष १६ फ़रवरी को इनका देहांत हुआ।अपनी जिंदिगी के आख़री क्षण तक itc sra में गुरु के दायित्व का निर्वाह करते रहे।वैसे तो मैंने इन्हें कभी सामने से नहीं सुना किंतु इनके दर्शन ज़रूर हुए थे जब आज से ४ वर्ष पूर्व SRA के सालाना संगीत सम्मेलन में गया था।
इस वर्ष केवल इन्हें ही नहीं खोया हमने बल्कि इसी घराने की एक और विदुषी ने भी हम से हमेशा के लिए विदा ले ली।जी हाँ! मैं बात कर रहा हुँ विदुषी वीना सहस्रबुद्धे की।वो भी इसी अदभुत घराने "ग्वालियर घराने" से आती थीं।वैसे इनकी गायकी में कुछ हद तक जयपुर और किराना घराने की भी छाप दिखाई देती थी।इन्होंने अपनी संगीत की तालीम पद्मश्री बलवंतरि भट्ट,पं वसंत ठाकर और पं गजानन राउ से ली थी।ख़याल के साथ-साथ भजन के लिए भी जानी थी विदुषी वीना सहस्रबुद्धे।इनकी गायकी के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है जैसे-राष्ट्रीय संगीत नाटक अकैडमी पुरस्कार,उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकैडमी अवार्ड।इन्होंने अपनी गायकी से कई बड़े संगीत सम्मेलनों में लोगों को अभिभूत किया है।२९ जून २०१६ को इन्होंने हमलोगों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
देख़ये ग्वालियर घराने की दो दिग्गजों की इतनी बातें की मैंने तो थोड़ी बातें तो ग्वालियर घराने की भी बनती है।इस घराने के जन्मदाता उस्ताद हससु खान,उस्ताद हद्दु खान के दादा पिरबक्स को कहा जाता है।ग्वालियर घराने की गायकी की मुख्य विशेषतायें में खुली आवाज़ में गायन,ध्रुपद अंग से मिलती जुलती गायकी,सीधी-सपाट तानों का प्रयोग,तानों में
गमक का प्रयोग; आती हैं।इस घराने में हमारे देश को कई नायाब संगीतकार दिए।पं विष्णु दिगम्बर पलूसकर,पं गुरुराउ देशपांडे,कृष्णराउ शंकर पंडित,उस्ताद फ़तह अली खान सब इसी घराने की देन है।अगर आज के संगीतकरों की बात करूँ तो विदुषी मालिनी रजरकर,पं विनायक टोरवि,मीता पंडित जैसे दिग्गोजों का नाम स्वतः ज़ेहन में आता है।अगर ग्वालियर घराने की बातें करता रहूँ तो शायद यह कभी ख़त्म ही ना हो।लेकिन आज बस इतना ही।अगली बार फिर संगीत पर बातों का सिल-सिला जारी रहेगा।।
सम्मानित किया गया हो।
इसी वर्ष १६ फ़रवरी को इनका देहांत हुआ।अपनी जिंदिगी के आख़री क्षण तक itc sra में गुरु के दायित्व का निर्वाह करते रहे।वैसे तो मैंने इन्हें कभी सामने से नहीं सुना किंतु इनके दर्शन ज़रूर हुए थे जब आज से ४ वर्ष पूर्व SRA के सालाना संगीत सम्मेलन में गया था।
इस वर्ष केवल इन्हें ही नहीं खोया हमने बल्कि इसी घराने की एक और विदुषी ने भी हम से हमेशा के लिए विदा ले ली।जी हाँ! मैं बात कर रहा हुँ विदुषी वीना सहस्रबुद्धे की।वो भी इसी अदभुत घराने "ग्वालियर घराने" से आती थीं।वैसे इनकी गायकी में कुछ हद तक जयपुर और किराना घराने की भी छाप दिखाई देती थी।इन्होंने अपनी संगीत की तालीम पद्मश्री बलवंतरि भट्ट,पं वसंत ठाकर और पं गजानन राउ से ली थी।ख़याल के साथ-साथ भजन के लिए भी जानी थी विदुषी वीना सहस्रबुद्धे।इनकी गायकी के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है जैसे-राष्ट्रीय संगीत नाटक अकैडमी पुरस्कार,उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकैडमी अवार्ड।इन्होंने अपनी गायकी से कई बड़े संगीत सम्मेलनों में लोगों को अभिभूत किया है।२९ जून २०१६ को इन्होंने हमलोगों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
देख़ये ग्वालियर घराने की दो दिग्गजों की इतनी बातें की मैंने तो थोड़ी बातें तो ग्वालियर घराने की भी बनती है।इस घराने के जन्मदाता उस्ताद हससु खान,उस्ताद हद्दु खान के दादा पिरबक्स को कहा जाता है।ग्वालियर घराने की गायकी की मुख्य विशेषतायें में खुली आवाज़ में गायन,ध्रुपद अंग से मिलती जुलती गायकी,सीधी-सपाट तानों का प्रयोग,तानों में
गमक का प्रयोग; आती हैं।इस घराने में हमारे देश को कई नायाब संगीतकार दिए।पं विष्णु दिगम्बर पलूसकर,पं गुरुराउ देशपांडे,कृष्णराउ शंकर पंडित,उस्ताद फ़तह अली खान सब इसी घराने की देन है।अगर आज के संगीतकरों की बात करूँ तो विदुषी मालिनी रजरकर,पं विनायक टोरवि,मीता पंडित जैसे दिग्गोजों का नाम स्वतः ज़ेहन में आता है।अगर ग्वालियर घराने की बातें करता रहूँ तो शायद यह कभी ख़त्म ही ना हो।लेकिन आज बस इतना ही।अगली बार फिर संगीत पर बातों का सिल-सिला जारी रहेगा।।
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