हाल ही में कोलकाता जाना हुआ। वहाँ मेरे गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान रहते हैं। गुरु जी इस दफ़े मुझे ख़याल गायकी की बारीकियों से अवगत करा रहे थे।
जिस दिन मैं गुरु जी के घर गया था, उस दिन कोलकाता में रिमझिम बारिश हो रही थीं, जिस वजह से मौसम ख़ुशनुमा बना था। इसी दौरान गुरु जी के घर एक मस्त और हरफ़नमौला व्यक्तित्व के धनी संजय अंकल (पं संजय अधिकारी) पहुँचते हैं।
संजय अंकल के तबले की थाप मैंने कभी विदुषी गिरजा देवी तो कभी पं अजय चक्रबर्ती तो कभी मेरे गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान तो कभी पं ओमकार दादरकर के साथ सुनी है। लेकिन मुझे उनका तबला वादन जितना खिंचता है उतना ही उनका व्यक्तित्व भी। वजह है उनका 'स्पोर्ट्स मेन नेचर'।
इस बार लगभग ५ वर्षों के बाद उनसे मुलाक़ात हुई। वे इस बार भी उतनी ही ऊर्जा से लैस थे और हाँ, वही मुस्कुराहट उनके चेहरे पर तैर रही थी। यह सब गुण खिलाड़ी का होता है और हो भी क्यों नहीं, दरअसल संजय अंकल एथलीट हैं। आप चौंक गए न !
आज जब पूरी दुनिया ओलम्पिक में खोई है तब यह बताना ज़रूरी है कि मशहूर तबला वादक संजय अंकल धावक भी रहे हुए हैं और राज्य स्तरीय और ज़िला स्तरीय प्रतिस्पर्धा में भी अपनी छाप छोड़ी है।
मुझे लगता है कोई भी साधना हो संगीत हो,स्पोर्ट्स हो,नृत्य हो या अन्य कोई विधा हो।किसी में भी शिखर पर पहुँचने के लिए एकाग्रता तो चाहिए ही चाहिए।
संजय अंकल से जब बात होने लगी तो उन्होंने कहा कभी ख़ुद भी नहीं सोचा था कि संगीत में आएँगे।वैसे वो संगीत में आएँ भी क्यों ना?
आख़िर सब के नसीब में कहाँ होता पं कुमार बोस जैसा गुरु? इन्होंने अपने तबले की तालीम की शुरूआत श्री आशीष रॉय चौधरी से की थी।और आज इन्हें आप हिंदुस्तान के शीर्षथ कलाकारों के साथ संगत करते पा सकते हैं।विदुषी गिरजा देवी,उस्ताद मशकूर अली खान,पं उल्हास खसालकर जैसे दिग्गज के साथ इन्हें संगत करने का सोभाग्य प्राप्त है।१९९६ में इन्हें "तालश्री" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आख़िर सब के नसीब में कहाँ होता पं कुमार बोस जैसा गुरु? इन्होंने अपने तबले की तालीम की शुरूआत श्री आशीष रॉय चौधरी से की थी।और आज इन्हें आप हिंदुस्तान के शीर्षथ कलाकारों के साथ संगत करते पा सकते हैं।विदुषी गिरजा देवी,उस्ताद मशकूर अली खान,पं उल्हास खसालकर जैसे दिग्गज के साथ इन्हें संगत करने का सोभाग्य प्राप्त है।१९९६ में इन्हें "तालश्री" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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