Tuesday 31 May 2016

एक शाम बस संगीत के नाम....

विदुषी किशोरी अमोनकर
परीक्षा ख़त्म हो चुकी है और लम्बी छुट्टियों की आगज हो चुकी है।अब पढ़ाई का कोई बोझ नहीं,कोई तनाव नहीं।आज ना तो मुझे पापा को पढ़ाई की हिसाब देने की जरुरत है और न मम्मी की ये आवाज़ आने की डर की पढ़ाई करने बैठो।आज शाम तो बस शास्त्रीय संगीत के राग-रागनियों का आनंद लेने का होता है। उनमें डूबने का होता है।
                 संध्या बेला है तो शुरुआत तो राग यमन से ही होनी है। वो भी विदुषी किशोरी अमोनकर की आवाज़ में।पद्मा विभूषण किशोरी अमोनकर जी जयपुर घराने से आती हैं।इस घराने में गमक वाली तानें और मींड के साथ अलाप ख़ासियत है।वाह! क्या अदभुत,मधुर,सुरीली आवाज़ है विदुषी किशोरी अमोनकर जी की ।कोई भी सुने तो बस सुनता ही रह जाए। राग यमन के बारे में तो ऐसा कहा जाता की किसी गायक की गायकी का पता उसके राग यमन की अदायगी से चल सकताहै राग यमन की सम्पूर्ण अदाएगी वो भी" सखी ऐरी आली पिया बिन " जैसी बंदिश,  किशोरी  अमोनकर जी की आवाज़ में हो तो इससे बेहतर शाम की शुरुआत क्या हो सकतीहै।किशोरी अमोनकर जी ने अपनी संगीत की शिक्षा भेंडि बाज़ार घराने के अंजनीबाई मलपेकर जी से ली हैं।इनकी आवाज़ तो ऐसी की फ़िल्मी दुनिया भी इनकी आवाज़ से अछूती न रही।१९६४ की फ़िल्म गीत गाया पत्थरों ने और १९९० की फ़िल्म दृष्टि में इन्होंने गाने गाये हैं जो कि आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।
      अगली बारी भी आती जयपुर घराने की ही विदुषी अश्विनी भिड़े की ।ओह! इनकी दिव्य आवाज़ की तो क्या कहने।राग बागेश्वरी बहुत जंच रहा था इनकी आवाज़ में।वैसे इनकी गायकी में कुछ हद तक मेवाती और किराना घराने की गायकी की छाप आती इस कारण इनकी गायकी का की एक अलग की शैली है।इन्होंने
विदुषी अश्विनी भिड़े
अपनी संगीत की शिक्षा जयपुर घराने के पंडित रत्नाकर पाई से ली है।अपनी गायकी और मधुर आवाज़ के बदौलत इन्होंने कई बड़े संगीत समारोहों में अपनी गायन से लोगों को अभिभूत किया है।राग बागेश्वरी का विरह और श्रृंगार  रस को विलंबित एकताल में "कौन गत भई" और द्रुत में "ऐरी माई साजन नहीं आए"जैसी बंदिशों में अदभुत रूप से पेश  किया है इन्होंने।

शाम को और आगे बढ़ाते हैं और चलते हैं राग जयजयवंती की ओर वो भी बनारस घराने के पंडित राजन साजन मिश्र की आवाज़ में।
बनारस घराने की तो ख़ासियत ऐसी की उत्तर भारतीय लोक संगीत की छाप भी  दिखायी देती इसमें।इन दोनों की आवाज़ इतनी मीठी की कोई भी इन दोनों के आवाज़ से अभिभूत हो जाए।चाहे इनकी आवाज़ में ख़याल हो या हो ठुमरी या टप्पा या तराना सब में लगता जैसे इन दोनों को महारथ हासिल हो।इनको इनकी अदभुत
पंडित राजन साजन मिश्र
गायकी के लिए पद्मा भूषण से भी नवाज़ा जा चुका है।राग जयजयवंती,जिसे अक्सर लोग एक जटिल राग के रूप में देखते पर इनकी आवाज़ में "ऐसों नवल लाड़ली राधा"।सच मुच कितने दिल से गाते ये दोनों बनारस घराने के दिग्गज। 


ऐसी किसी की चाहत न होगी कि ऐसी शाम का अंत हो।संगीत तो ऐसी होती की इसको जितना सुनो उतना और सुनने का मन करता,उतना और डूबने का मन करता।
फिर मिलते हैं और चर्चा करते हैं संगीत पर।।


Sunday 29 May 2016

Music with divinity.....Carnatic Music

Vidhushi MS Subbulakhshmi
 I was in vellore for my check-ups. This time the place felt much familiar to me. Moreover, it was my sixth visit to this place and I just hoped that it would be the last one.
      One thing which attracts me the most in the southern part is their temples. The religious, serene, musical environment of the temples just attracts me the most. The temples and the sweet, melodious carnatic music being played at a low volume make the environment perfect to take someone in a musical trance. The magical voice of the Carnatic singers keeps the listeners in a awe stricken trance. The famous Kanchi Kailasanathar temple in Kanchipuram is considered one of the oldest structures, the temple is dedicated to Lord Shiva.The credit of the building of this temple has been given to the rulers of the Pallava dynasty.The temple has a beautiful structure to look at. To add to the beauty of temple is the low volume played Carnatic music.I heard a Shiva bhajan in some sweet, divine and melodious voice.
 The voice was mesmerizing and had magnetic power in it which was attracting me. Later I found out the voice was of no other but of Bharat ratna MS Subbulakhshmi. I had heard Carnatic music quite a few times in past but it had not fascinated me the way it did this time.MS Subbulakhshmi is considered one of the finest vocalists India has ever produced. She is the first musician to be conferred by the Bharat Ratna in the field of music. Awarded with a numerous other awards she holds the pride of getting the prestigious Ramon Magsaysay Award, which is considered as the Nobel Prize of Asia. The mastery of her presenting the ragas and the bhajans has made a lot of people the fan of her pristine voice.
This incident has made a Hindustani classical music lover a permanent Carnatic Classical music lover too.
Mridangam
Later, I got an opportunity to listen to some of the prominent doyens of Carnatic Music like-Vidhushi Karaikudi Mani and Vidwan TN Krishanan. The aura, the atmosphere created by this music is such that it cannot be explained in words. The five modern states of India-Andhra Pradesh, Telangana, Karnataka, Kerala and Tamil Nadu are the states; this music is roughly confined to. The reasons for the differentiation between North, and South Indian music are not clear. After a lot of thinking and reading about this I concluded that the difference in the music just represents the fundamental cultural difference between two distinct geographical areas. Numerous musicians and composers have enriched the tradition of this music. Some notable personalities were; Papanasam Shivan, Gopala Krishna Bharati, Swati Tirunal, Mysore Vasudevachar, Narayan Tirtha, Uttukadu Venkatasubbair, Arunagiri Nathar, and Annamacharya. Vocal music forms the basis of South Indian music.  Although there is a rich instrumental tradition that uses vina, venu and violin, they revolve around instrumental renditions of vocal forms. Like tabla in
Pt M Balamurali Krishna
Hindustani Classical Music performances, Mridangam is the main instrument that provide rhythm and ragga to Carnatic Music performances. Pt M Balamurali Krishna is one of the leading vocalist of the current generation.He has been conferred by Padma Vibhushan for his contributions towards the Indian Art.I often heard him in jugalbandis with prominent musicians like- Pt Bhimsen Joshi,Pt Hariprasad Chaurasia.Whenever I heard these jugalbandis or say the jugalbandi of Hindustani Music and Carnatic Music makes me a greater fan of both the music forms.


Someone has correctly said- "Carnatic music is synonym to salvation and eternity."


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Friday 27 May 2016

आज बातें कुछ सदाबहार गानों की...

मेरे लिए संगीत का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ शास्त्रीय संगीत होता था।कई लोगों ने मुझे कहा कि फ़िल्मी गीत भी गाऊँ।पर मैं तो बस शास्त्रीय संगीत में ऐसा रच-बस गया था कि कुछ और सुनने का भी मन नहीं करता था।
आज सुबह जब मेरी आँखें खुली  तो मुझे एक बहुत ही मधुर आवाज़ में "हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते" सुनने को मिला।

बेगम परवीन सुल्ताना
सच -मुच इस गाने को सुन कर मुझे इस गाने से प्यार हो गया था।बाद में यह पता चला की इस गाने के संगीतकार आर डी बर्मन थे और यह गाना फ़िल्म क़ुदरत से था।इस गाने को और किसी ने नहीं बल्कि पटियाला
घराने की विख्यात गायिका बेगम परवीन सुल्ताना ने गाया है। मुझे आज भी याद है जब मैं आज से ४ वर्ष पहले आईटीसी एसआरए के वार्षिक सम्मेलन में बेगम साहिबा को लाइव सुन रहा था तो लोग किस तरह इस  को सुनने की फ़रमाइश उनसे कर रहे थे।उनके महज़ इस गाने को गुन-गुनाने से पूरी महफ़िल की फ़िज़ा ही बदल गयी थी।हमें तुमसे प्यार कितना गाने को किशोर कुमार जी ने भी गाया है जो कि काफ़ी लोकप्रिय हुआ है।बाद में मैंने हिंदी फ़िल्मों के गाने के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरु कर दी।तो चलिए आज हमलोग वैसे गानों में डूबते हैं जो की काफ़ी हद तक शास्त्रीय संगीत और इसके  रागों पर आधारित हैं।अब फ़िल्मों की गानों की बात हो तो भारत रत्न लता मंगेशकर जी का नाम ख़ुद ब ख़ुद ज़हन में आता।

भारत रत्न लता मंगेशकर जी
लता मंगेशकर,ये नाम  सुनते ही कानों में एक मीठी,मधुर,सुरीली आवाज़ गूँजने लगती है।न जाने कितने सूपरहिट
गानें दिए इन्होंने संगीत जगत को।फ़िल्म सीमा से "मनमोहना बड़े झूठे "जिसमें शंकर जयकिशन जी ने राग जयजवंती को बख़ूबी इस्तेमाल किया है जो की गाने की सुंदरता को और भी बढ़ाता है।राग बागेश्वरी में राधा ना बोले रे फ़िल्म आज़ाद से,राग भोपाली में ज्योति कलश चलके -भाभी की चूड़ियाँ फ़िल्म से और न जाने कितने ऐसे गाने गाएँ होंगे लता जीं ने अपनी मधुर आवाज़ मे ।रफ़ी साहब की आवाज़ में "मधुबन में राधिका नाचे रे"जो की राग हमीर पर आधारित है ,के न जाने कितने लोग दीवाने होंगे।अक्सर लोग इस गाने को गुन-गुनाते मिल जाएँगे आपको।अगर बात करूँ में मन्ना डे साहब की तो फ़िल्म नरसि भगत में उनके और हेमंत कुमार जी द्वारा गाया गया "दर्शन दो घनश्याम' सुनते ही मन में एक गजब की रुहानियत पैदा होती  है।मन्ना डे साहब की राग अहिर भैरव में "पूछो ना कैसे मैंने रैन बितायी'  जो की फ़िल्म "मेरी सूरत तेरी आँखें",की चर्चा किए बिना में मैं कैसे आगे बढ़ सकता।वाह! क्या संगीत दी थी एस डी बर्मन और मन्ना डे की जोडी ने।
रफ़ी साहब

राग मल्हार में गाया गया "गरजत बरसत सावन आयो रे" सुमन कल्याणपुर और कमल बारोत जो की बरसात की रात (१९६०)फ़िल्म से है।इसे भी लोगों ने काफ़ी पसंद किया है।                                                        
              इंद्रधनुशी आवाज़ में रंगी रामपुर सहस्वान घराने के उस्ताद राशिद खान साहब के आवाज़ में "आओगे जब तुम सजाना"गाने की तो बात ही न पूछये।इतनी दमदार आवाज़ में गाया हुआ यह मधुर गीत मन में एक अजीब शकुन पैदा करता है।यह गाना फ़िल्म जब वी मेट से है।
     ये विडम्बना तो देख़ये ये लोकप्रिय गाने हर कोई गुन-गुनाते मिल जाएँगे और साथ में ये मिथक पाले की शास्त्रीय संगीत को समझना और सुनना उनकी बस में नहीं है।

 संगीत की संगत तो अदभुत रुहानियत का एहसास देती है जहाँ रुहानियत हो उसे समझा नहीं एहसास किया जाता,डूबा जाता आनंद आनंद लिया जाता इसके राग -रागीनियों की ।समझ तो बाद में आनी ही है।।



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Sunday 22 May 2016

आज बातें आगरा घराना की...


आज मैं बात करूँगा एक अद्भुत घराने की। एक ऐसा घराना जिससे कई दिग्गज आते हैं। वही घराना, जिससे मेरे गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान आते हैं। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ शास्त्रीय संगीत के समृद्ध घरानाओं में से एक "आगरा घराने की"

वैसे तो शास्त्रीय संगीत में कई घराने हैं पर आज बातें सिर्फ़ और सिर्फ़ आगरा घराने की।

माना ऐसा गया है कि अलखदास और मूलकदास इस घराने के पहले संगीतकार थे।वैसे हाजी सुजान खान ने बाद में आगरा घराने को पूर्णत: स्थापित किया।खुदा बक्श ,ग़ुलाम अब्बास खान और कलाम खान जैसे संगीतकारों ने इस घराने को आगे बढ़ाया।

ग्वालियर घराने की ख़याल गायकी से मिलती जुलती गायकी इस घराने की पहचान है।आपलोग के मन में ज़रूर ये सवाल आया होगा  कि ग्वालियर गायकी से मिलती है आगरे की गायकी क्यों मेल खाती है?

उस्ताद फ़ैयाज़ खान
जब मैंने यही सवाल अपने गुरु जी से पूछा तो उन्होंने मुझे बताया की खुदा बक्श ने नाथान पीरबक्श से ख़याल गायकी की तालीम ली थी जो ग्वालियर घराने से आते थे। इस घराने की सारी ख़ूबियों को बताना तो सम्भव नहीं किंतु कुछ की चर्चा मैं अवश्य करूँगा।

ध्रुपद गायकी से मिलती जुलती नोम-तोम अलाप से गायन की शुरुआत फिर ध्रुपद गायकी से मिलती विलंबित ख़याल इस घराने की पहचान है।

द्रुत ख़याल गायकी में बोल तान ,खुली और बुलंद आवाज़ आगरा घराने के संगीतकारों की पहचान हैं।खुली आवाज़ से मुझे एक वाक़या याद आ रहा जिससे मैं आपलोगों को अवगत करना चाहूँगा। मेरे गुरूजी एक बार भागलपुर आए हुए थे स्वर्गीय राजकुमार श्यामानन्द सिंह के जयंती पर।उस कार्यक्रम में माइक की व्यवस्था न होने के वाबजूद भी दूर बैठे लोग उनके गायन को सुन पा रहे  थे।
 उस्ताद अता हुसैन खान


वैसे तो कई दिग्गज कलाकार थे अथवा हैं इस घराने से लेकिन मैं उनमें से कुछ की बात करूँगा यहाँ।आफ़ताब-
ऐ-मौसिकी नाम से प्रसिद्ध उस्ताद फ़ैयाज़ खान आगरा घराने के सबसे प्रमुख गायकों में से एक हैं।इन्होंने कई
ठुमरियाँ भी रची इसलिए इन्हें प्रेम पिया के नाम से भी जाना जाता है।इनके प्रमुख शगिर्दों में से उस्ताद अता हुसैन खान एक हैं। मैंने अपने गुरूजी से इनकी चर्चा बहुत सुनी थी।पंडित भटखंडे जी ने तो अता हुसैन खान साहब को  "संगीत -के- रत्न तक कह डाला था।जब मैंने इनकी आवाज़ में जौनपुरी राग की "पढ़ये वाके गाये ना सजनी" बंदिश सुनी तो मेरा मन रोमांचित हो उठा।      
पंडित यशपाल


आज मैंने नेट पर उस्ताद फ़ैयाज़ खान साहब की भैरवी में "बनाओ ना बातियाँ चलो काहे को झूठी" सुनी तो मुझे अचानक अपने गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान की आईटीसी एसआरए की बुधवार सभा में गायी यही बंदिश की याद आयी।

वाह! दो अलग -अलग समय के दिग्गजों की दमदार आवाज़ में इस बंदिश को सुनकर एक अदभुत अनुभूति हुई।अगर मैं बात करूँ आज के आगरा घराने कीसंगीतकारों की तो पंडित जितेंद्र अभिषेकि,विदुषी सुब्रा गुहा,उस्ताद वसीम अहमद खान ,पंडित देवाशीष गांगुली,पंडित विजय किचलू ,पंडित यशपाल के नाम मेरे मन में आते।

मैं ख़ुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि कहीं न कहीं इस अद्भुत घराने से जुड़ गया हूँ।

उस्ताद वसीम अहमद खान
आगे और भी घराने की चर्चा जारी रहेगी अगली मुलाक़ातों में।

Sunday 15 May 2016

आज ध्रुपद और ठुमरी की बात !

Pt Umakant Gundecha 
यह बिता सप्ताह मेरे जैसे संगीत प्रेमी के लिए बहुत ख़ास था।आपलोगों ने तो पंडित उमाकांत गुंडेचा और अप्पा जी (विदुषी गिरजा देवी जी ) का नाम सुना ही होगा। एक सुप्रसिद्ध ध्रुपदिया तो एक प्रसिद्ध ठुमरी गायिका। इन दोनों का जन्मदिन इस बीते सप्ताह के आठ तारीख़ को था। 

पहले मैं बात ध्रुपद की करूँगा।ध्रुपद शास्त्रीय संगीत की पुरातन परम्परा है और ख़याल, ठुमरी आदि की उत्पत्ति इसी से मानी गयी है। ध्रुपद एक आध्यात्मिक और गम्भीर प्रकृति का संगीत है जिसमें श्रोताओं को एक अद्भुत शांति और सुकून मिलता है।ध्रुपद चार शैलियों में गाया जाता है -गौहर,डागर ,खनधार और नौहर।

डागरवाणी  ध्रुपद शैली के आज के एक सुप्रसिद्ध ध्रुपदियों में से एक पंडित उमाकांत गुंडेचा की मैं बात करना चाहूँगा।  इन्हें २०१२ में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाज़ा गया है।इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा उस्ताद ज़ीया फरुद्दीन डागर और उस्ताद ज़ीया मोहिद्दीन डागर से ली है। मैं जब भी इनकी आवाज़ में राग यमन की नोम-तोम अलाप सुनता तो रोम रोम पुलकित हो जाता है। 

इन्होंने ध्रुपद गायकी को लोकप्रिय  करने के लिए भोपाल में एक ध्रुपद केंद्र नाम से एक गुरुकुल खोल रखा है जिसमें कई देश -विदेश के बच्चे ध्रुपद की तालीम  लेते हैं। 

पंडित जी ने तुलसीदास  के पदों को इस प्रकार कर्णप्रिय बना के लोगों के बीच ध्रुपद शैली में प्रस्तुत किया है की ये आज काफ़ी लोकप्रिय हो गये है।इन्होंने देश - विदेश में कई बड़े संगीत सम्मेलनों में अपनी प्रस्तुति दे कर ध्रुपद को लोकप्रिय करने का अनवरत प्रयास किया है।

अब बात ठुमरी की।ठुमरी भारतीय संगीत की एक गायन शैली है जिसमें रस,रंग और भाव  की प्रधानता होती है। इसकी बंदिशें ज़्यादतर शृंगार रस में होती हैं।अगर ठुमरी की बात करें तो मन अपने आप विदुषी गिरजा देवी जी की मधुर आवाज़ में डूब जाती है। बाबुल मोरा नेहर छूटा जाए उनकी आवाज़ में एक बहुत प्रसिद्ध ठुमरी है। गिरजा देवी जी का जन्म वाराणसी में  हुआ था। इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा श्री सरज़ू  प्रसाद मिश्र  से ली । ये बनारस घराने से आती हैं और अभी ये कोलकाता के आइटीसी एसआरए में गुरु है।    
Vidushi Girja Devi


मैंने तो इन्हें कभी लाइव नहीं सुना किंतु इनके देवीय व्यक्तित्व को ज़रूर देखा जब मैं आइटीसी के वार्षिक संगीत सम्मेलन में ४ वर्ष पूर्व गया था। ठुमरी के साथ साथ इन्हें ख़याल,टप्पा ,दादरा ,होली आदि गाने में भी महारथ हासिल है।२०१५ में भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया।बनारस में पली-बढ़ी विदुषी गिरजा देवी की आवाज़ को सुनकर मुझे अंग्रेज़ी का एक शब्द "listener's feast" बिलकुल सटीक लगता इनके मधुर आवाज़ के लिए।

एसे महान गुणीजनों को मेरा सत-सत नमन।संगीत पर और करेंगे बातें अगली बार जब मिलेंगे हम।

Wednesday 11 May 2016

आज करते हैं लोकनृत्य की बात !

Padma Bhusan Teejan Bai
शास्त्रीय संगीत के साथ मुझे नृत्य से भी लगाव है, खासकर पांडवानी नृत्य शैली का नृत्य। आप लोगों को पता ही होगा कि पांडवानी छत्तीसगढ़ का एक परम्परागत  लोक कला शैली है। इस शैली के नृत्य की बात करने पर मुझे तीजन बाई  की याद आती है। 

पाँच साल पहले की बात है। स्पिक मैके के एक कार्यक्रम में पद्मभूषण तीजन बाई को देखने का मुझे मौक़ा मिला था। 

अब चलिए, पांडवानी शब्द में हम डूबने की कोशिश करते हैं। पांडवानी का अर्थ ही पांडव की वाणी। इस शैली में नृत्य के साथ महाभारत की कथा बांची जाती है इस नृत्य में जो मुख्य कलाकर होता वो इस प्रकार इस नृत्य को प्रस्तुत करता की ऐसा लगता वो महाभारत की कथा का चित्रण कर रहा हो। मुझे  तीजन बाई जी की प्रस्तुति को देखकर बहुत ही अच्छा लगा। 

ग़ौरतलब है कि तीजन बाई को १९८८ में पद्मश्री और २००३ में पदमभूषण से नवाज़ा गया । तीजन बाई के नृत्य शैली में रूचि बढ़ने के बाद से ही मैंने भारत में एसे अन्य लोक कला शैलियों को समझने की कोशिश की।  


 छतीसगढ के बाद मैं असम की लोककला से आपको रूबरू कराना चाहूँगा। असम सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से एक बिहू एक ऐसी परंपरा है जो यहां की
Bihu Dance 
 गौरव है।


इस नृत्य की ख़ासियत इसकी फुरतिलि नृत्य मुद्राएँ हैं। वैसे तो असम  में एसे कई लोक नृत्य एवं संगीत के प्रकार की भरमार है किंतु बिहु इनमे से सबसे प्रमुख है।असम का नाम लेते ही मैं स्वर्गीय भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में खो जाता हूं। 

भूपेन दा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वो एक प्रसिद्ध असमिया भाषा के गीतकार , संगीतकार और गायक थे।इनके आवाज़ में " ओ गंगा तू बहती है क्यों " एक बहुत ही लोकप्रिय गाना है ।


 अब चलिए बंगाल।आज भी वहाँ की संस्कृति बिलकुल सुरक्षित है। यहाँ की छऊ नृत्य झारखंड और उड़ीसा में भी प्रसिद्ध है किंतु इस नृत्य की उत्पत्ति बंगाल के पुरुलिया ज़िले से मानी गयी है। इस नृत्य की प्रस्तुति ज़्यादातर क्षेत्रिय त्योहारों में होती है। परम्परागत या लोग गीत के धुन पर इस नृत्य की प्रस्तुति की जाती है। नृत्य में कभी कभी रामायण या महाभारत के घटनाओं का भी चित्रण होता है। 
Folk dance of bengal


  अब झारखंड की बात। नृत्य और संगीत झारखंड के जन-जाति की प्राण है। यहाँ के आदिवासियों के भी पाँव, ताल और लय में चलते।यहाँ के लोग अगर किसी ख़ास मौक़े पर मिलते हैं तो वो लोग परम्परागत नृत्य अथवा संगीत की प्रस्तुति करते हैं । सडनी , दमकच, कली जनानी आदि यहाँ के कुछ प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं। 
   

इसके बाद बात घूमर की , ये राजस्थान का लोक नृत्य है। भील जन जातियों द्वारा स्थापित ये नृत्य आज लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। जैसा कि हम जानते हैं राजस्थान अपने रेगिस्तान के लिए जाना जाता है यहाँ के लोगों को पानी की हमेशा से थोड़ी दिक़्क़त रही है । यहाँ के लोग गीत पनिहारी गाते हैं जो कि विशेष रूप से पानी और कुओं का वर्णन करता है । राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोक गायकों में से एक बीकानेर घराने की अल्लाह जीजा बाई हैं ।ख्वाजा मेरे ख्वाजा और  रंगिलों
Rajasthani Folk song
मारो धोलना जैसे फ़िल्म के गाने भी राजस्थान के लोक संगीत पर आधारित है।


 केरल की पदायनी जो की सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है हमारे दक्षिणी भारत की उसकी तो बात ही कुछ और है । केरल तो अपने लोग संगीत के लिए भी जाना जाता है । इस राज्य को हम सोपान संगीथम के नाम से भी जानते हैं । सोपान संगीथम हमारे शास्त्रीय संगीत से जन्मा जिसकी उत्पत्ति यहाँ की मंदिरों से मानी जाती है।

आब बात उस क्षेत्र की बात जहाँ से मैं आता हूँ यह भूमि सांस्कृतिक रूप से बहुत ही उर्वर रही है और विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक  अवसरों के लिए अलग अलग प्रकार की लोक गीत प्रचलित हैं।इस क्षेत्र की एक पर्व जिसे सामा चकेवा कहते हैं जिसे हिंदी के कार्तिक माह में मनाया जाता है इस अवसर पर सामा चकेवा के गीत गाए जाते हैं। माँगलिक अवसरों पे गायी जाने वाली महेशवाणी , शिशु के जन्म पे गाये जाने वाली सोहर, विवाह के अवसर पर समदाओन जैसे अनेक प्रकार की गीत संगीत अलग अलग अवसरों के लिए प्रचलित हैं । अभी हाल में ही मुझे गीत-नाद मिथिलाक धरोहर शैली दीदी ( सुश्री शैली सिंह) की गायी हुई पारम्परिक सुर  ,लय, ताल में सजी हुई और उनकी सधी हुई आवाज़ में सुनकर मन ख़ुश हो गया। 

नृत्य- गीत की बातें आज इतनी ही, फिर मिलते , बातें करते हैं।

The healing power of music

Music is the rhythm of life. It is a creative tool to improve and develop the mental and physical well being of a person. First of all a question comes to my mind and the question is- What is music? The answer I got after thinking and reading different articles on music was” Music is a way of expressing our experiences. Music is a way of outward activity and inward activity”  (According to Music Therapy Association of British Columbia). The Indian Classical Music plays a very vital and tremendous role in healing a disease naturally. This music produces beneficial effects and is physically, mentally, emotionally and spiritually uplifting. Indian classical music is based on the raga. The raga is a melodic scale, consisting of notes. The word 'raga' in Sanskrit means  'to please'. Technically then raga means a sweet combination of musical  notes coming after another in succession. Here are few ragas and their effect in healing some of the diseases-

Raaga Gurjari Todi has a capacity to cool down the liver and Raga  Gurjari Todi and Yaman has a power of sustenance. Both raagas have a power to stabilize the wandering attention  which is very important for the meditation.Raaga Abhogi helps  to  stimulate the digestion process. Raaga Bhairav and Durga have a power of divine bliss and  protection. Raaga Jaijaiwanti helps to  controls five sense organs. Raag Malhar is useful in the treatment of asthma and sunstroke. Raga Todi, Poorvi & Jayjaywanti are useful in providing relief from cold and headache. Raga Hindol & Marava  are the ragas which are useful in blood purification. Raga Shivaranjani is  useful for memory problems. Raga Kharahara Priya  strengthens the mind and relieves tension. Curative for heart disease and nervous irritablility, neurosis, worry and distress. Raga Hindolam and Vasantha   gives relief from Vatha Roga, B.P, Gastritis and purifies blood.
 One of the unique characteristics of Indian music is the assignment of definite times of the day and night for performing or listening Raga melodies. It is believed that only in this period the Raga appears to be at the height of its melodic beauty and majestic splendor .For instance Raga Bhairav if listened to it in the early morning has different effect on the ears rather it being listening in the evening.
To conclude the power of musical vibrations connects in some manner or the other to every living being on the planet. Someone has correctly said-
            “Music should be healing, music should uplift the soul, music should inspire; then there is no better way of getting closer to God, of rising higher towards the spirit, of attaining spiritual perfection, only if it is rightly understood.”

Sunday 1 May 2016

आज केवल राग में डूबना है-झूमना है !

Pt Jasraj
रविवार की सुबह अन्य दिनों के सुबह से काफी अलग होती है. ये सुबह कोलाहल से दूर संगीत के रियाज़ और सुबह के रगों में खोने का होता है . इस सुबह न मम्मी की गुस्से में ये आवाज़ आती की "जल्दी करो स्कूल के लिए लेट हो जाओगे" न ही जल्दी तैयार होने की जल्दी होती है. इस तरह सूर्योदय के साथ मेरी सुबह की रियाज़ की शुरुआत होती.

खुद के रियाज़ के बाद जब मैं अपने सी.डी के संकलनों से कुछ गाने सुनता तो मन झूम उठता है। जानते हैं, आज भोर की शुरुआत राग भैरव से हुई. आपको पता ही होगा कि इस राग को पहला राग भी माना गया है.
ऐसी मान्यता है की जब भगवान शिव हिमालय पर बैठ कर ध्यान कर रहे थे तो उनके मन में राग भैरव ही चल रहा था . राग भैरव हो और वो भी पंडित जसराज के मधुर आवाज़ में और वो भी " मेरो अल्लाह मेहरबान " जैसी बंदिश हो तो सुबह की बात ही कुछ और होती है.
Ustad Rashid Khan
                                                                                                          पंडित जसराज की आध्यात्मिक आवाज़ मेरे भीतर एक अदभुत रूहानियत पैदा करती है. मुझे लगता है कि हर किसी को ऐसा होता होगा। पंडित जसराज जी की आवाज़ में इस राग को सुन कर मन को बहुत सुकून मिलता.

 राग भैरव के बाद राग तोड़ी की बारी आती है . उस्ताद राशिद खान के दमदार आवाज़ में इस राग का मजा ही कुछ और है. राग तोड़ी एक ऐसा राग है जो किसी तनाव ग्रस्त इंसान को भी खुश कर सकता. " अब मोरी नइयां " बंदिश सुनकर ऐसा लगता है मानो यह राशिद खान के गले के लिए ही बना हो. उस्ताद जी रामपुर-सहसवान घराने से आते हैं . ये घराना अपने तान कारी और तराने के लिए विख्यात है.

सुबह में अगर गाना सुने और भारत रत्न  पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ ना सुने तो ऐसा लगता जैसे कुछ बाँकि रह गया हो.राग
Pt Bhimsen Joshi
 जौनपुरी में " पायल की झंकार " बंदिश , पंडित जी की आवाज़ में बहुत अच्छी लगती है मुझे. राग जौनपुरी से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. इस राग में ज्यादा बंदिशें श्रृंगार रस में होती.


 परंपरा के अनुसार अंत तो हमेशा राग भैरवी से ही होता है और भैरवी  हो मेरे गुरु जी आगरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान की सधी हुई , मधुर और दमदार आवाज़ में बंदिश " बनाओं बत्तियां चलो काहे हो झूठी " हो तो सच में रविवार की शुरुआत इससे अच्छी हो ही नहीं सकती . राग भैरवी को सुन के मन को एक अजीब सी शांति मिलती है.
Ustad Waseem Ahmed Khan
 "बाबुल मोरा नैहर छूटा जाए " इस राग में एक प्रसिद्ध फिल्मी गाना है.


सुर, ताल, राग , रागनियों में डूबा रविवार का भोर, सच में  एक अलगअनुभूति देती है !

Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...