Sunday 1 May 2016

आज केवल राग में डूबना है-झूमना है !

Pt Jasraj
रविवार की सुबह अन्य दिनों के सुबह से काफी अलग होती है. ये सुबह कोलाहल से दूर संगीत के रियाज़ और सुबह के रगों में खोने का होता है . इस सुबह न मम्मी की गुस्से में ये आवाज़ आती की "जल्दी करो स्कूल के लिए लेट हो जाओगे" न ही जल्दी तैयार होने की जल्दी होती है. इस तरह सूर्योदय के साथ मेरी सुबह की रियाज़ की शुरुआत होती.

खुद के रियाज़ के बाद जब मैं अपने सी.डी के संकलनों से कुछ गाने सुनता तो मन झूम उठता है। जानते हैं, आज भोर की शुरुआत राग भैरव से हुई. आपको पता ही होगा कि इस राग को पहला राग भी माना गया है.
ऐसी मान्यता है की जब भगवान शिव हिमालय पर बैठ कर ध्यान कर रहे थे तो उनके मन में राग भैरव ही चल रहा था . राग भैरव हो और वो भी पंडित जसराज के मधुर आवाज़ में और वो भी " मेरो अल्लाह मेहरबान " जैसी बंदिश हो तो सुबह की बात ही कुछ और होती है.
Ustad Rashid Khan
                                                                                                          पंडित जसराज की आध्यात्मिक आवाज़ मेरे भीतर एक अदभुत रूहानियत पैदा करती है. मुझे लगता है कि हर किसी को ऐसा होता होगा। पंडित जसराज जी की आवाज़ में इस राग को सुन कर मन को बहुत सुकून मिलता.

 राग भैरव के बाद राग तोड़ी की बारी आती है . उस्ताद राशिद खान के दमदार आवाज़ में इस राग का मजा ही कुछ और है. राग तोड़ी एक ऐसा राग है जो किसी तनाव ग्रस्त इंसान को भी खुश कर सकता. " अब मोरी नइयां " बंदिश सुनकर ऐसा लगता है मानो यह राशिद खान के गले के लिए ही बना हो. उस्ताद जी रामपुर-सहसवान घराने से आते हैं . ये घराना अपने तान कारी और तराने के लिए विख्यात है.

सुबह में अगर गाना सुने और भारत रत्न  पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ ना सुने तो ऐसा लगता जैसे कुछ बाँकि रह गया हो.राग
Pt Bhimsen Joshi
 जौनपुरी में " पायल की झंकार " बंदिश , पंडित जी की आवाज़ में बहुत अच्छी लगती है मुझे. राग जौनपुरी से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. इस राग में ज्यादा बंदिशें श्रृंगार रस में होती.


 परंपरा के अनुसार अंत तो हमेशा राग भैरवी से ही होता है और भैरवी  हो मेरे गुरु जी आगरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान की सधी हुई , मधुर और दमदार आवाज़ में बंदिश " बनाओं बत्तियां चलो काहे हो झूठी " हो तो सच में रविवार की शुरुआत इससे अच्छी हो ही नहीं सकती . राग भैरवी को सुन के मन को एक अजीब सी शांति मिलती है.
Ustad Waseem Ahmed Khan
 "बाबुल मोरा नैहर छूटा जाए " इस राग में एक प्रसिद्ध फिल्मी गाना है.


सुर, ताल, राग , रागनियों में डूबा रविवार का भोर, सच में  एक अलगअनुभूति देती है !

No comments:

Post a Comment

Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...