जिस कलाकार ने दुनियाभर को अपने संगीत का रसिक बना रखा हो, जिन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण जैसे अनेकों पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका हों और जिन्होंने ने 24 रागों की रचना की चुकी हो,वैसे कलाकार को उनके ७१ वें जन्मदिन पर मेरा शत्-शत् नमन।जी हाँ! आज ९ अक्तूबर है और आज जन्मदिन है "सरोद सम्राट" उस्ताद अमजद अली खान का।छह साल की उम्र से संगीत सीखने वाले उस्ताद अमजद अली खां साहब अपने परिवार की छठी पीढ़ी हैं जो संगीत को आगे बढ़ा रहे हैं। उस्ताद जी संगीत के लिए प्रसिद्ध बंगश घराने से आते हैं और उन्होंने अपनी तालीम अपने पिता उस्ताद
हाफ़िज़ अली खान से ली है।उस्ताद हाफ़िज़ अली खान ग्वालियर घराने के सभा-संगीतज्ञ थे।इन्हें भी भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
अमजद अली खान साहब का व्यक्तित्व इतना सहज लेकिन इतना प्रभावी है कि मशहूर निर्देशक गुलजार ने 1990 में उन पर फिल्म प्रभाग की तरफ से ‘अमजद अली खान’ शीर्षक से एक वृतचित्र फिल्म का निर्माण किया और इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।आज के दौर में जहाँ शास्त्रीय संगीत में वाद्य-यंत्र के प्रति लोगों की अभिरुचि कम होती जा रही है वैसे में भी उस्ताद जी सरोद जैसे वाद्य की मधुर झंकार से लोगों को देश-विदेश में अपना क़ायल बना रखा है।ईरान का वाद्य 'रबाब' को भारतीय संगीत परंपरा एवं वाद्यों के अनुकूल परिवर्धित करके निर्मित किया गया। यह नया वाद्य यंत्र ही 'सरोद' कहलाया जिसका अर्थ होता है मेलोडी अर्थात मधुरता है।भारत ही नहीं, पूरा विश्व आज इनसे संगीत की दीक्षा लेना चाहता है।उस्ताद जी ने देश-विदेश के अनेक बड़े संगीत सम्मेलनों में संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफुर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि।इन्होंने ग्वालियर में एक म्यूज़ीयम "सरोद घर" भी खोल रखा है जहाँ सरोद से जुड़े फोटो, दस्तावेज, शास्त्रीय संगीत पर किताबें, लेख आदि का एक ख़ज़ाना है।
उस्ताद जी का मानना है कि "संगीत एक इबादत है क्योंकि वह खुदा की देन है और दुनिया का हर धर्म संगीत के जरिये ही इबादत करता है. मस्जिद की अजान और मंदिर के घंटे-घड़ियाल इसी मौसिकी की एक मिसाल है।"प्रसिद्ध भरतनाट्यम नर्तकी सुब्बालक्ष्मी उनकी धर्मपत्नी हैं।
महात्मा गांधी की 144वीं जयंती पर जब संयुक्त राष्ट्र की विशेष सभा में राष्ट्रपिता को संगीत से श्रद्धांजलि देने की बारी आई तो इस कार्य के लिए भी उस्ताद अमजद अली खान को चुना गया था।उस्ताद जी ने अपने संगीतमय घराने को आगे बढ़ाते हुए अपने दो पुत्रों उस्ताद अमान अली और उस्ताद अयान अली को भी इस वाद्य की तालीम दी और अपने पिता की तरह हो ये दोनों भी अपने संगीत से दुनिया भर में अपनी एक पहचान बना चुके हैं।
बातें तो और भी हैं पर बाक़ी बातें फिर कभी।एक बार फिर उस्ताद अमजद अली खान साहब को मेरा नमन।।
उस्ताद अमजद अली खान |
अमजद अली खान साहब का व्यक्तित्व इतना सहज लेकिन इतना प्रभावी है कि मशहूर निर्देशक गुलजार ने 1990 में उन पर फिल्म प्रभाग की तरफ से ‘अमजद अली खान’ शीर्षक से एक वृतचित्र फिल्म का निर्माण किया और इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।आज के दौर में जहाँ शास्त्रीय संगीत में वाद्य-यंत्र के प्रति लोगों की अभिरुचि कम होती जा रही है वैसे में भी उस्ताद जी सरोद जैसे वाद्य की मधुर झंकार से लोगों को देश-विदेश में अपना क़ायल बना रखा है।ईरान का वाद्य 'रबाब' को भारतीय संगीत परंपरा एवं वाद्यों के अनुकूल परिवर्धित करके निर्मित किया गया। यह नया वाद्य यंत्र ही 'सरोद' कहलाया जिसका अर्थ होता है मेलोडी अर्थात मधुरता है।भारत ही नहीं, पूरा विश्व आज इनसे संगीत की दीक्षा लेना चाहता है।उस्ताद जी ने देश-विदेश के अनेक बड़े संगीत सम्मेलनों में संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफुर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि।इन्होंने ग्वालियर में एक म्यूज़ीयम "सरोद घर" भी खोल रखा है जहाँ सरोद से जुड़े फोटो, दस्तावेज, शास्त्रीय संगीत पर किताबें, लेख आदि का एक ख़ज़ाना है।
उस्ताद जी का मानना है कि "संगीत एक इबादत है क्योंकि वह खुदा की देन है और दुनिया का हर धर्म संगीत के जरिये ही इबादत करता है. मस्जिद की अजान और मंदिर के घंटे-घड़ियाल इसी मौसिकी की एक मिसाल है।"प्रसिद्ध भरतनाट्यम नर्तकी सुब्बालक्ष्मी उनकी धर्मपत्नी हैं।
महात्मा गांधी की 144वीं जयंती पर जब संयुक्त राष्ट्र की विशेष सभा में राष्ट्रपिता को संगीत से श्रद्धांजलि देने की बारी आई तो इस कार्य के लिए भी उस्ताद अमजद अली खान को चुना गया था।उस्ताद जी ने अपने संगीतमय घराने को आगे बढ़ाते हुए अपने दो पुत्रों उस्ताद अमान अली और उस्ताद अयान अली को भी इस वाद्य की तालीम दी और अपने पिता की तरह हो ये दोनों भी अपने संगीत से दुनिया भर में अपनी एक पहचान बना चुके हैं।
बातें तो और भी हैं पर बाक़ी बातें फिर कभी।एक बार फिर उस्ताद अमजद अली खान साहब को मेरा नमन।।
No comments:
Post a Comment