आज मैं बात करूँगा एक किताब की, जिसमें संगीत के शीर्षस्थ ११ कलाकारों से संवाद है। पुस्तक का नाम है -"सुनता है गुरु ज्ञानी" की। ऐसा कहा जाता है कि ध्रुपद की बात गुंडेचा बंधु के चर्चा के बिना अधूरा है। इस पुस्तक में गुंडेचा बंधु ने बड़ी ही सरलता से म्यूज़िक के अलग-अलग पहलुओं पर शास्त्रीय संगीत के बड़े-बड़े दिग्गजों की बातें लिखी है। हालाँकि यह पुस्तक एक संवाद के रूप में लिखा गया है।किताब १८५ पृष्ठ की हैं और यह भोपाल के ध्रुपद केंद्र से प्रकाशित हुई है। किताब बारे में लिखते हुए लगा कि पंडित मुकुल शिवपुत्र के बारे में पाठकों को बहुत कुछ जानने की ज़रूरत है। मुकुल
शिवपुत्र पंडित कुमार गंधर्व के पुत्र और शिष्य हैं और वे गुंडेचा बंधु से बात-चीत के दौरान ये बताते हैं कि कुमार गंधर्व एक गुरु के रूप में कैसे थे।मुकुल शिवपुत्र बताते हैं की कैसे उन्हें हर राग की तालीम दी जाती थी उनके पिता के द्वारा जो की हिंदुस्तान के सर्वकालीन सर्वश्रेठ गायकों में से एक थे।इसके अलवा कई और विषयों पर भी पंडित जी ने अपनी बात रखी है इस अध्याय में। वहीं दूसरी ओर उस्ताद रहीम फ़हिमुद्दीन डागर ने इस पुस्तक में मुख्यतः डागर घराने के गायकी और उसूलों पर अपनी सोच रखी है।तानसेन के हिन्दू होने या मुसलमान होने पर भी उन्होंने अपनी बात रखी है और बड़े ही सरल ढंग से यह बताने की कोशिश की है की किसी भी धर्म से होने से किसी की संगीत अथवा उसकी गायकी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पुस्तक के तीसरे अध्याय की बात करें तो इसमें पं. देबू चौधरी से संगीत के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा है जिसमें पंडित जी ने मुख्यतः आज कल शास्त्रीय गायन में हार्मोनीयम के प्रयोग और संगीत की शिक्षा पद्धति में बदलाव पर अपनी बात रखी है।उनका मानना है कि हार्मोनीयम कभी भी शास्त्रीय गायन में संगत के तौर पर इस्तमाल नहीं होना चाहिए।इसके कई कारण पर इस पुस्तक में चर्चा की गयी है। पुस्तक में देश के महशूर संतूर वादक पं शिव कुमार शर्मा से गुंडेचा बंधुओं की वार्तालाप है।इस पाठ में पंडित जी ने बड़े ही रोचक अन्दाज़ में अपने वाद्य संतूर का इतिहास बताया है और अपने आज तक के संगीतमय सफ़र का भी वाख्या किया है। जयपुर घराने की दिग्गज किशोरी अमोनकर के बारे में भी किताब में चर्चा है। उनके बारे में पढ़कर पहली बात जो मुझे समझ आयी इस अध्याय से वो है कि विदुषी किशोरी जी एक स्पष्टवादी हैं और वो अपने विचारों को बड़ी स्पष्टता से रखा है इस पुस्तक में। विदुषी किशोरी अमोनकर ने अपने विचार फ़्यूज़न म्यूज़िक पर रखे हैं और उन्होंने अपने रियाज़ करने के तरीक़े के बारे में भी बतलाया है।और उन्होंने आज की पीढ़ी के लिए भी अपनी बात कही है इस पुस्तक में। इसके बाद के अध्याय में बात की गयी है भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी जी से। पंडित भीमसेन जोशी जी से बात करने के क्रम में लेखक उनसे आज के गायक उनके गायकी की नक़ल करते।इस पर उनकी बात जान ने की कोशिश की है साथ ही पंडित जी ने बंदिशों की प्रस्तुतीकरण पर भी अपनी बात रखी है इस अध्याय में। आगे चलते हैं और अगले अध्याय में बात-चीत है सरोद के उस्ताद -उस्ताद अमजद अली खान साहब से।उस्ताद जी ने पहले तो अपनी ख़ुशी इस बात पर ज़ाहिर की है कि एक संगीतकार दूसरे संगीतकार से बात कर रहा है और इस से पहले इस तरह की कोई पुस्तक नहीं आयी।इस अध्याय में उस्ताद जी से कई विषयों पर वार्तालाप की गयी है जैसे उनके अनुभवों के बारे में जब वे सरोद की तालीम दिया करते थे अपने शगिर्दों को।उस्ताद जी ने अपने पिता और अपने परिवार के बारे में भी काफ़ी कुछ कहा है।फ़्यूज़न म्यूज़िक, नए रागों की रचना इन सब विषयों पर भी अमजद अली खान साहब से बात किया गुंडेचा बंधु ने इस पुस्तक में। पुस्तक में देश के जाने-माने बाँसुरी वादक
पं.हरिप्रसाद चौरसिया जी से एक संवाद है गुंडेचा बंधु का।पंडित जी ने उनकी प्रारम्भिक शिक्षा और उनके स्कूली जीवन के बारे में बताया है इस अध्याय में।पंडित जी द्वारा फ़िल्मों में म्यूज़िक देने से ले कर अन्य बाँसुरी वादकों से उनकी वादन कैसे भिन्न है। इन सब के बारे में जान ने की कोशिश की गुंडेचा बंधु ने। बातों को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं अगले अध्याय पर जिसमें बात कर रहे हैं गुंडेचा बंधु मशहूर तबलवादक पं सुरेश तलवलकर से।सबसे पहले गुंडेचा बंधु ने बात की शुरूआत करते हुए पंडित जी से आवर्तन के विषय पर बात की और आगे चल कर पंडित जी ने तबले के घरानों पर भी काफ़ी कुछ कहा। "मैं, मैं नहीं हूँ कोई और है" इस वाक्य से शुरू हुई गुंडेचा बंधु की वार्तालाप संगीत मार्तण्ड पं जसराज जी से।पंडित जी ने इस अध्याय में अपने बचपन की यादों को गुंडेचा बंधुओं से साझा किया है।आगे उन्होंने हार्मोनीयम का शास्त्रीय संगीत में उपयोग होने या ना होने पर भी अपनी बात कही है। आगे चलते हैं और अब हम आ पहुँचे हैं इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में जिसमें गुंडेचा बंधु ने अपने गुरु उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के बारे में लिखा है उनसे हुई अपनी वार्तालाप को लिखा है। उस्ताद जी कहते हैं-"आवाज़ व्यक्तिगत है लेकिन 'स्टाइल' निजी नहीं है" । उस्ताद जी ने आज कल हो रहे इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा के इस्तमाल को ले कर अपनी नाराज़गी व्यक्त की है।उनका मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा में वो बात नहीं जो की एक तानपुरे में होती।आगे उन्होंने अपने विचार संगीत के घराने पर भी रखा है। इसके साथ ही हम पुस्तक के अंत पर आ पहुँचे। इसमें और भी कई रोचक और संगीत की बातें हैं। तो आपलोग इस पुस्तक को पढ़िए और आनंद लीजिए।निश्चित रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत के समकालीन दिग्गजों की राय इस विधा के विभिन्न बारीक पहलुओं पर प्रकाश डालता है और यह पुस्तक हर संगीत प्रेमी को पढ़नी चाहिए।फिर मिलेंगे और संगीत पर चर्चा को जारी रखेंगे।।
शिवपुत्र पंडित कुमार गंधर्व के पुत्र और शिष्य हैं और वे गुंडेचा बंधु से बात-चीत के दौरान ये बताते हैं कि कुमार गंधर्व एक गुरु के रूप में कैसे थे।मुकुल शिवपुत्र बताते हैं की कैसे उन्हें हर राग की तालीम दी जाती थी उनके पिता के द्वारा जो की हिंदुस्तान के सर्वकालीन सर्वश्रेठ गायकों में से एक थे।इसके अलवा कई और विषयों पर भी पंडित जी ने अपनी बात रखी है इस अध्याय में। वहीं दूसरी ओर उस्ताद रहीम फ़हिमुद्दीन डागर ने इस पुस्तक में मुख्यतः डागर घराने के गायकी और उसूलों पर अपनी सोच रखी है।तानसेन के हिन्दू होने या मुसलमान होने पर भी उन्होंने अपनी बात रखी है और बड़े ही सरल ढंग से यह बताने की कोशिश की है की किसी भी धर्म से होने से किसी की संगीत अथवा उसकी गायकी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पुस्तक के तीसरे अध्याय की बात करें तो इसमें पं. देबू चौधरी से संगीत के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा है जिसमें पंडित जी ने मुख्यतः आज कल शास्त्रीय गायन में हार्मोनीयम के प्रयोग और संगीत की शिक्षा पद्धति में बदलाव पर अपनी बात रखी है।उनका मानना है कि हार्मोनीयम कभी भी शास्त्रीय गायन में संगत के तौर पर इस्तमाल नहीं होना चाहिए।इसके कई कारण पर इस पुस्तक में चर्चा की गयी है। पुस्तक में देश के महशूर संतूर वादक पं शिव कुमार शर्मा से गुंडेचा बंधुओं की वार्तालाप है।इस पाठ में पंडित जी ने बड़े ही रोचक अन्दाज़ में अपने वाद्य संतूर का इतिहास बताया है और अपने आज तक के संगीतमय सफ़र का भी वाख्या किया है। जयपुर घराने की दिग्गज किशोरी अमोनकर के बारे में भी किताब में चर्चा है। उनके बारे में पढ़कर पहली बात जो मुझे समझ आयी इस अध्याय से वो है कि विदुषी किशोरी जी एक स्पष्टवादी हैं और वो अपने विचारों को बड़ी स्पष्टता से रखा है इस पुस्तक में। विदुषी किशोरी अमोनकर ने अपने विचार फ़्यूज़न म्यूज़िक पर रखे हैं और उन्होंने अपने रियाज़ करने के तरीक़े के बारे में भी बतलाया है।और उन्होंने आज की पीढ़ी के लिए भी अपनी बात कही है इस पुस्तक में। इसके बाद के अध्याय में बात की गयी है भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी जी से। पंडित भीमसेन जोशी जी से बात करने के क्रम में लेखक उनसे आज के गायक उनके गायकी की नक़ल करते।इस पर उनकी बात जान ने की कोशिश की है साथ ही पंडित जी ने बंदिशों की प्रस्तुतीकरण पर भी अपनी बात रखी है इस अध्याय में। आगे चलते हैं और अगले अध्याय में बात-चीत है सरोद के उस्ताद -उस्ताद अमजद अली खान साहब से।उस्ताद जी ने पहले तो अपनी ख़ुशी इस बात पर ज़ाहिर की है कि एक संगीतकार दूसरे संगीतकार से बात कर रहा है और इस से पहले इस तरह की कोई पुस्तक नहीं आयी।इस अध्याय में उस्ताद जी से कई विषयों पर वार्तालाप की गयी है जैसे उनके अनुभवों के बारे में जब वे सरोद की तालीम दिया करते थे अपने शगिर्दों को।उस्ताद जी ने अपने पिता और अपने परिवार के बारे में भी काफ़ी कुछ कहा है।फ़्यूज़न म्यूज़िक, नए रागों की रचना इन सब विषयों पर भी अमजद अली खान साहब से बात किया गुंडेचा बंधु ने इस पुस्तक में। पुस्तक में देश के जाने-माने बाँसुरी वादक
पं.हरिप्रसाद चौरसिया जी से एक संवाद है गुंडेचा बंधु का।पंडित जी ने उनकी प्रारम्भिक शिक्षा और उनके स्कूली जीवन के बारे में बताया है इस अध्याय में।पंडित जी द्वारा फ़िल्मों में म्यूज़िक देने से ले कर अन्य बाँसुरी वादकों से उनकी वादन कैसे भिन्न है। इन सब के बारे में जान ने की कोशिश की गुंडेचा बंधु ने। बातों को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं अगले अध्याय पर जिसमें बात कर रहे हैं गुंडेचा बंधु मशहूर तबलवादक पं सुरेश तलवलकर से।सबसे पहले गुंडेचा बंधु ने बात की शुरूआत करते हुए पंडित जी से आवर्तन के विषय पर बात की और आगे चल कर पंडित जी ने तबले के घरानों पर भी काफ़ी कुछ कहा। "मैं, मैं नहीं हूँ कोई और है" इस वाक्य से शुरू हुई गुंडेचा बंधु की वार्तालाप संगीत मार्तण्ड पं जसराज जी से।पंडित जी ने इस अध्याय में अपने बचपन की यादों को गुंडेचा बंधुओं से साझा किया है।आगे उन्होंने हार्मोनीयम का शास्त्रीय संगीत में उपयोग होने या ना होने पर भी अपनी बात कही है। आगे चलते हैं और अब हम आ पहुँचे हैं इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में जिसमें गुंडेचा बंधु ने अपने गुरु उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के बारे में लिखा है उनसे हुई अपनी वार्तालाप को लिखा है। उस्ताद जी कहते हैं-"आवाज़ व्यक्तिगत है लेकिन 'स्टाइल' निजी नहीं है" । उस्ताद जी ने आज कल हो रहे इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा के इस्तमाल को ले कर अपनी नाराज़गी व्यक्त की है।उनका मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा में वो बात नहीं जो की एक तानपुरे में होती।आगे उन्होंने अपने विचार संगीत के घराने पर भी रखा है। इसके साथ ही हम पुस्तक के अंत पर आ पहुँचे। इसमें और भी कई रोचक और संगीत की बातें हैं। तो आपलोग इस पुस्तक को पढ़िए और आनंद लीजिए।निश्चित रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत के समकालीन दिग्गजों की राय इस विधा के विभिन्न बारीक पहलुओं पर प्रकाश डालता है और यह पुस्तक हर संगीत प्रेमी को पढ़नी चाहिए।फिर मिलेंगे और संगीत पर चर्चा को जारी रखेंगे।।
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