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Tuesday, 13 December 2016

सुनता है गुरु ज्ञानी...

आज मैं बात करूँगा एक किताब की, जिसमें संगीत के शीर्षस्थ ११ कलाकारों से संवाद है। पुस्तक का नाम है -"सुनता है गुरु ज्ञानी" की। ऐसा कहा जाता है कि ध्रुपद की बात गुंडेचा बंधु के चर्चा के बिना अधूरा है। इस पुस्तक में गुंडेचा बंधु ने बड़ी ही सरलता से म्यूज़िक के अलग-अलग पहलुओं पर शास्त्रीय संगीत के बड़े-बड़े दिग्गजों की बातें लिखी है। हालाँकि यह पुस्तक एक संवाद के रूप में लिखा गया है।किताब १८५ पृष्ठ की हैं और यह भोपाल के ध्रुपद केंद्र से प्रकाशित हुई है। किताब बारे में लिखते हुए लगा कि पंडित मुकुल शिवपुत्र के बारे में पाठकों को बहुत कुछ जानने की ज़रूरत है। मुकुल
शिवपुत्र पंडित कुमार गंधर्व के पुत्र और शिष्य हैं और वे गुंडेचा बंधु से बात-चीत के दौरान ये बताते हैं कि कुमार गंधर्व एक गुरु के रूप में कैसे थे।मुकुल शिवपुत्र बताते हैं की कैसे उन्हें हर राग की तालीम दी जाती थी उनके पिता के द्वारा जो की हिंदुस्तान के सर्वकालीन सर्वश्रेठ गायकों में से एक थे।इसके अलवा कई और विषयों पर भी पंडित जी ने अपनी बात रखी है इस अध्याय में। वहीं दूसरी ओर उस्ताद रहीम फ़हिमुद्दीन डागर ने इस पुस्तक में मुख्यतः डागर घराने के गायकी और उसूलों पर अपनी सोच रखी है।तानसेन के हिन्दू होने या मुसलमान होने पर भी उन्होंने अपनी बात रखी है और बड़े ही सरल ढंग से यह बताने की कोशिश की है की किसी भी धर्म से होने से किसी की संगीत अथवा उसकी गायकी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पुस्तक के तीसरे अध्याय की बात करें तो इसमें पं. देबू चौधरी से संगीत के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा है जिसमें पंडित जी ने मुख्यतः आज कल शास्त्रीय गायन में हार्मोनीयम के प्रयोग और संगीत की शिक्षा पद्धति में बदलाव पर अपनी बात रखी है।उनका मानना है कि हार्मोनीयम कभी भी शास्त्रीय गायन में संगत के तौर पर इस्तमाल नहीं होना चाहिए।इसके कई कारण पर इस पुस्तक में चर्चा की गयी है। पुस्तक में देश के महशूर संतूर वादक पं शिव कुमार शर्मा से गुंडेचा बंधुओं की वार्तालाप है।इस पाठ में पंडित जी ने बड़े ही रोचक अन्दाज़ में अपने वाद्य संतूर का इतिहास बताया है और अपने आज तक के संगीतमय सफ़र का भी वाख्या किया है। जयपुर घराने की दिग्गज किशोरी अमोनकर के बारे में भी किताब में चर्चा है। उनके बारे में पढ़कर पहली बात जो मुझे समझ आयी इस अध्याय से वो है कि विदुषी किशोरी जी एक स्पष्टवादी हैं और वो अपने विचारों को बड़ी स्पष्टता से रखा है इस पुस्तक में। विदुषी किशोरी अमोनकर ने अपने विचार फ़्यूज़न म्यूज़िक पर रखे हैं और उन्होंने अपने रियाज़ करने के तरीक़े के बारे में भी बतलाया है।और उन्होंने आज की पीढ़ी के लिए भी अपनी बात कही है इस पुस्तक में। इसके बाद के अध्याय में बात की गयी है भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी जी से। पंडित भीमसेन जोशी जी से बात करने के क्रम में लेखक उनसे आज के गायक उनके गायकी की नक़ल करते।इस पर उनकी बात जान ने की कोशिश की है साथ ही पंडित जी ने बंदिशों की प्रस्तुतीकरण पर भी अपनी बात रखी है इस अध्याय में। आगे चलते हैं और अगले अध्याय में बात-चीत है सरोद के उस्ताद -उस्ताद अमजद अली खान साहब से।उस्ताद जी ने पहले तो अपनी ख़ुशी इस बात पर ज़ाहिर की है कि एक संगीतकार दूसरे संगीतकार से बात कर रहा है और इस से पहले इस तरह की कोई पुस्तक नहीं आयी।इस अध्याय में उस्ताद जी से कई विषयों पर वार्तालाप की गयी है जैसे उनके अनुभवों के बारे में जब वे सरोद की तालीम दिया करते थे अपने शगिर्दों को।उस्ताद जी ने अपने पिता और अपने परिवार के बारे में भी काफ़ी कुछ कहा है।फ़्यूज़न म्यूज़िक, नए रागों की रचना इन सब विषयों पर भी अमजद अली खान साहब से बात किया गुंडेचा बंधु ने इस पुस्तक में। पुस्तक में देश के जाने-माने बाँसुरी वादक
पं.हरिप्रसाद चौरसिया जी से एक संवाद है गुंडेचा बंधु का।पंडित जी ने उनकी प्रारम्भिक शिक्षा और उनके स्कूली जीवन के बारे में बताया है इस अध्याय में।पंडित जी द्वारा फ़िल्मों में म्यूज़िक देने से ले कर अन्य बाँसुरी वादकों से उनकी वादन कैसे भिन्न है। इन सब के बारे में जान ने की कोशिश की गुंडेचा बंधु ने। बातों को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं अगले अध्याय पर जिसमें बात कर रहे हैं गुंडेचा बंधु मशहूर तबलवादक पं सुरेश तलवलकर से।सबसे पहले गुंडेचा बंधु ने बात की शुरूआत करते हुए पंडित जी से आवर्तन के विषय पर बात की और आगे चल कर पंडित जी ने तबले के घरानों पर भी काफ़ी कुछ कहा। "मैं, मैं नहीं हूँ कोई और है" इस वाक्य से शुरू हुई गुंडेचा बंधु की वार्तालाप संगीत मार्तण्ड पं जसराज जी से।पंडित जी ने इस अध्याय में अपने बचपन की यादों को गुंडेचा बंधुओं से साझा किया है।आगे उन्होंने हार्मोनीयम का शास्त्रीय संगीत में उपयोग होने या ना होने पर भी अपनी बात कही है। आगे चलते हैं और अब हम आ पहुँचे हैं इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में जिसमें गुंडेचा बंधु ने अपने गुरु उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के बारे में लिखा है उनसे हुई अपनी वार्तालाप को लिखा है। उस्ताद जी कहते हैं-"आवाज़ व्यक्तिगत है लेकिन 'स्टाइल' निजी नहीं है" । उस्ताद जी ने आज कल हो रहे इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा के इस्तमाल को ले कर अपनी नाराज़गी व्यक्त की है।उनका मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा में वो बात नहीं जो की एक तानपुरे में होती।आगे उन्होंने अपने विचार संगीत के घराने पर भी रखा है। इसके साथ ही हम पुस्तक के अंत पर आ पहुँचे। इसमें और भी कई रोचक और संगीत की बातें हैं। तो आपलोग इस पुस्तक को पढ़िए और आनंद लीजिए।निश्चित रूप से भारतीय शास्त्रीय संगीत के समकालीन दिग्गजों की राय इस विधा के विभिन्न बारीक पहलुओं पर प्रकाश डालता है और यह पुस्तक हर संगीत प्रेमी को पढ़नी चाहिए।फिर मिलेंगे और संगीत पर चर्चा को जारी रखेंगे।।

Friday, 1 July 2016

मन में बस गया... "भारत भवन"

मैं झील के किनारे बैठा हुआ हूँ।ठंडी-ठंडी हवा चल रही है और चारों ओर हरे-भरे पेड़।वातावरण में एक अजीब सी शांति और शकुन का एहसास हो रहा है।धीमी आवाज़ में सितार पर राग यमन की अलाप कानों में आ रही है।
एक ऐसी जगह जहाँ कला के हर प्रकार का वास है।ऐसी जगह जहाँ साहित्य भी है, जहाँ संगीत भी है।जहाँ नृत्य भी है, पेंटिंग भी है।जहाँ थियेटर भी है सिनेमा भी है।कहीं पंडित जसराज की मधुर आवाज़ भी गूँजती तो कहीं कथक की थिरकन तो कहीं भरतनाट्यम् की भाव का अहसास होता है।पांडवानी के रूप तीजन बाई की भी
उपस्थिति का अहसास है यहाँ पर।जहाँ कलाकारों की कला-कृतियाँ मन को अभिभूत कर रहीं है तो जहाँ जन-जन के कवि बाबा नागार्जुन की पंक्तियाँ भी सुनाई दे रही है।जी हाँ बात कर रहा हूँ मैं भोपाल में स्थित भारत भवन की।ये जगह मेरे लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है।जैसे जैसे मैं इस प्रांगन में घूम रहा हूँ वैसे-वैसे मुझे कई कलाकारों,कवियों,लेखकों,रंगकर्मियों की सुखद अहसास और अनुभूति हो रही है।
सबसे पहले मैं "रूपानकर" पहुँचा।ये भारत भवन का एक अंग है जो की माडर्न,लोक और जन-जातीय कला-कृत्यों का एक संग्रहालय है।इस संग्रहालय में कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी हो चुकें हैं अभी तक।जे स्वामिनाथम,के जी सुब्रमणीयम,हेन्री मोरे जैसे कई कलाकारों के प्रदर्शनी यहाँ आयोजित किए जा चुके हैं।
इसके बाद मैंने भारत भवन का रंगमंच पहुँचा-"रंगमण्डल"।यह रंगमंच नाटक जैसे कला,जो की लोगों के बीच से विलुप्त हो चुका है,को संजों कर रखने में एक बहुत बड़ा योगदान दे रहा है।१००० कार्यक्रम और ५० से भी ज़्यादा नाटकों के मंचन का साक्षी रह चुका है यह रंगमंच।पीटर ब्रुक,निरंजन गोस्वामी,तापस सेन जैसे कई दिग्गज यहाँ अपनी प्रस्तुति दे कर लोगों को अभिभूत कर चुके हैं।यहाँ समकालीन लेखकों के नाटकों की  भी
प्रस्तुति होती है तो सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ नाटकों का भी मंचन होता ही है।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी,बाबा नागार्जुन,शमशेर सिंह बहादुर जैसे कवियों के कविताओं में डूब गया है मन।जी हाँ मैं भारत भवन के भारतीय कवियों को समर्पित एक अंग "वगरथ" पहुँच चुका हूँ।१३००० से भी ज़्यादा कविताओं के पुस्तक से लैस, शायद ये अपने तरह का अकेला संग्रहालय होगा जहाँ इतने सारे कवियों की कविता किसी को एक जगह मिल सकती है।यहाँ पर कई बड़े कवियों और लेखकों के हस्त लिखित रचनायें भी रखी हुई हैं जो की अपने आप में अदभुत हैं।यहाँ पर कई बड़े कवि सम्मेलन का आयोजन होता ही रहता है।
अब मैं भारत भवन के उस अंग में आ पहुँचा हूँ जिसे देखने के लिए मैं सबसे ज़्यादा उत्सुक था।हाँ!! मैं पहुँच गया हूँ "अनहद"--यह भारतीय शास्त्रीय ,लोक और आदिवासी संगीत का केंद्र है।यहाँ कई प्रकार के संगीत सम्मेलन होते हैं जैसे-परम्परा,सप्तक आदि।अनहद अपने स्थापना से आज तक के गौरवमय यात्रा में कई दिग्गज कलाकारों की कला प्रस्तुति का साक्षी रह चुका है।चाहे वो पं जसराज हों या उस्ताद ज़ाकिर हूसेन या उस्ताद अल्लाह रखा हों या पं रविशंकर सभी के संगीत की गूँज सुनाई देती है यहाँ।अभी पिछले ही वर्ष यहाँ आगरा घराने पर एक संगीत गोष्ठी हुई था जिसमें मेरे गुरूजी उस्ताद वसीम अहमद खान को भी आमंत्रित किया गया था।
इसके बाद मैं "छवि" पहुँचा।यह भारत भवन का हाल में ही बना एक अंग है जो कि भारतीय सिनेमाओं के लिए एक केंद्र है।यहाँ पर कई राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित किए जा चुके हैं।
बहुत दिनों से इच्छा थी भारत भवन देखने की।वो आज पूरी हो गयी।मुझे इतना कुछ देखने के बाद ऐसा लगता
की शायद भारत में कोई दूसरा भारत भवन नहीं होगा।
सच-मुच भारत भवन अपने भारत नाम को साकार करता है।भारत के विविधताओं को संजो कर रखने और उसे लोगों के बीच पहुँचाने का काम भारत भवन पिछले कई दशकों बख़ूबी करता आ रहा है और यह आज भी जारी है।किसी कला प्रेमी के लिए यह किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं।।


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Sunday, 19 June 2016

पूर्णिया से भोपाल, बस गीत और संगीत...

बहुत सारा शहर देख लिया,घूम लिया अपनी १७ वर्ष की उम्र में।कभी इलाज के चक्कर में तो कभी संगीत के क्रम में।
    इस बार भोपाल भी देख लिया-घूम लिया।पर इस बार न तो इलाज कारण था ना ही संगीत।पर इस बार तो गर्मी की छुट्टियों का आनंद ही एक मात्र कारण था।
     भोपाल शहर अपने-आप में अदभुत है।शांत,सुंदर झीलों का शहर भोपाल भारत के सुंदरतम शहरों में गिना जाता है।और हो भी क्यों ना? मध्य प्रदेश को भारत का ह्रदय कहा जाता है और भोपाल तो मध्य प्रदेश का ही ह्रदय है।भोपाल से १८० की.मी स्थित जहाँ उज्जैन है जो की हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है शिप्रा नदी के किनारे अवस्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।वहीं भोपाल में ताज-उल
झीलों के शहर का एक झील
मस्जिद है जो की भारत के सबसे विशाल मस्जिदों में से एक है। 
भोपाल शहर गंगा-यमुनी तहज़ीब का एक अनूठा उदाहरण है।
         भोपाल आज विश्व में एक और कारण से जाना जाता है और वह है ११८४ में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से लगभग बीस हजार लोग का मारा जाना।ये इतनी बड़ी दुर्घटना थी की इसका प्रभाव आज भी वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण के रूप में जारी है।
  वैसे भोपाल शहर अपने पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है।भोपाल से 28 किमी दूर स्थित भोजपुर जो की भगवान शिव को समर्पित भोजेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
  भोपाल स्थित भारत भवन के बारे में तो क्या कहूँ? साहित्य, कला और संगीत का अदभुत संगम यहाँ किसी को देखने को मिल सकता है।भारत भवन पर विस्तृत बात-चीत अगली बार करूँगा।
  भोपाल स्थित जन-जातिये (tribal museam)संग्रहालय
एक अनोखा फ़्यूज़न है माडर्न आर्ट और जन-जातीये आर्ट का।कोई यह संग्रहालय
देख ले तो उसे जन-जातियों के रहन-सहन, उनके खान-पान,और उनके सांस्कृतिक विरासत की अदभुत झलक देखने को मिलती है।
जन जातियों की संगीत
जन-जातियों के खेलों के बारे में काफ़ी कुछ जानने को मिला।रक्कु,पिटटो,क़ुस्ती,मछली पकड़ने के खेल आदि कई जन-जातीय खेलों के बारे में जानने को मिला।मेघनाध खम्भ जो की जो की भिल समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है यह खम्भ मेघनाद पूजा में भीलों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।उसकी भी एक कला-कृति मुझे यहाँ देखने को मिली।इन जन-जातियों से जुड़ी हुई अदभुत सांस्कृतिक और कलात्मक पहलुओं को सहज-सँवार कर रखने की जरुवत है जो की यह संग्रहालय बख़ूबी कर रहा है और हम जैसे लोगों को इस सब के बारे में अवगत करा रहा है।

  संगीत के बिना तो मेरी हर यात्रा अधूरी रहती है। उज्जैन जाने के रास्ते में मैं देवास से गुज़रा।ये वही जगह है जिसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक दिग्गज संगीतकार दिया।जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ पं कुमार गंधर्व की।उन्होंने अपनी गाने की एक अलग ही शैली बना ली थी जिसके कारण वे कई बार विवादों में भी पड़े किंतु उनका ऐसा मानना था की वो एक रूढ़िवादी हैं और कुछ नया करना चाहते थे और इसी कारण उन्होंने कभी भी किसी घराने को नहीं अपनाया।इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा पं बी॰आर डेओढ़र से ली थी।पंडित जी एक अदभुत गायक तो थे की किंतु
ध्रुपद केंद्र की दीवार से
 उसके साथ-साथ वे एक म्यूज़िकॉलॉजिस्ट भी थे।पंडित जी ने ख़याल के साथ- साथ निर्गुण भजन,लोक गीत आदि भी अपने शैली में गा कर लोगों को अभिभूत किया है।इन्हें १९८८ में पद्मा भूषण और १९९० में पद्मा विभूषण से नवाज़ा गया है।इन्होंने राग गांधी-मल्हार की रचना भी की है जिसे इन्होंने पहली बार महात्मा गांधी के शताब्दी वर्ष पर आयोजित एक कार्यक्रम में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में लोगों के सामने गाया था।इतना कुछ पढ़ने के बाद पंडित जी की आवाज़ में "उड़ जाएगा हंस अकेला" सुना तो अदभुत रुहानियत का एहसास हुआ।पंडित जी की अनोखी गायकी और बुलंद आवाज़ के बारे में तो क्या कहूँ! लीजिए मैं पंडित जी पे काफ़ी कुछ बोल गया।फिर मैं घूमते घूमते  ध्रुपद के गुरुकुल "ध्रुपद केंद्र" आ पहुँचा।ये संस्थान गुंडेचा बंधु द्वारा स्थापित १९८१ में की गयी थी।तब ये आज तक यहाँ गुंडेचा बंधु ने कई लोगों को गुरु-शिष्य परम्परा से ध्रुपद की तालीम दी है।भारत के साथ-साथ युरप के भी कई लोग यहाँ ध्रुपद की तालीम लेने आते हैं।

  और मेरी भोपाल यात्रा का अंत गुंडेचा बंधु के माता-पिता से भेंट के साथ हुआ।"सुनता है गुरु ज्ञानी" गुंडेचा बंधु की लिखी हुई ये किताब लेने के लिए मैं गुंडेचा बंधु के भोपाल स्थित आवास पर गया था जहाँ मेरी मुलाक़ात उनके माता-पिता से हुई।उनलोगों को देख कर आश्चर्य हुआ इतने बड़े दिग्गजों का घर और इतने सरल और सहज लोग!
  इस प्रकार मेरी भोपाल यात्रा का सुखद अंत हुआ।काफ़ी कुछ देखने-जानने को मिला मुझे भोपाल शहर को देखने पर।।



Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...