परीक्षा ख़त्म हो गयी आज और आज कई दिनों बाद, बिना किसी तनाव के मैंने संगीत का आनंद लिया।आज की शाम मैंने शास्त्रीय संगीत के कई दिग्गजों को सुना।अगर शुरूआत करनी हो तो निश्चय ही वो मेरे गुरु जी से होगी।
तो सबसे पहले मैंने सुना अागरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान को जो अपने घराने की गायकी की बारीकियों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का बख़ूबी निर्वाह कर रहे हैं आईटीसी एसआरए के माध्यम से।मैंने इनकी दमदार आवाज़ में राग पूर्वा की "मथुरा न जाइयों मोरा कान्हा सुना" तो एक अदभुत रूहानियत का अहसास हुआ।राग पूर्वा एक शाम का बड़ा ही ख़ूबसूरत राग है। माना ऐसा जाता है की इस राग में ज़्यादातर श्रृंगार रस के गाने गाये जाते हैं। इसी राग में बाद में मैंने गुरु जी द्वारा गाई "पिया नवेला ना पाया" सुना, यह भी एक अद्भुत बंदिश है और गुरु जी की आवाज़ में हो तो इस से बेहतर क्या हो सकता है?
आगे चलते हैं और बात करते हैं ग्वालियर घराने के एक विदुषी की -मीता पंडित की।
मैंने इनको आज से ५-६ साल पहले पूर्णिया के एक स्पिक मकाय के एक कार्यक्रम में सुना था।इनके द्वारा गायी भैरवी मैंने हाल में ही यूटूब पर सुना।अदभुत मधुर और मिठास है इनकी सुरीली आवाज़ में।
मैंने युवा उस्तादों में सामने से श्री ब्रजेश्वर मुखर्जी जो पं अजय चक्रबर्ती के शिष्य हैं और श्री अलिक सेनगुप्ता,जो पं उल्हास कसलकर के शिष्य हैं, को भी सुना है।
वैसे तो ऐसे कई दिग्गज युवा उस्तादों और विदुषियों से भरा पड़ा है हमारा देश, एक पोस्ट में सब पर चर्चा सम्भव नहीं। फिर मिलेंगे और संगीत पर बातें का सिलसिला जारी रखेंगे।।
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