Thursday, 6 April 2017

एक शाम पूर्वा से भैरवी तक...

परीक्षा ख़त्म हो गयी आज और आज कई दिनों बाद, बिना किसी तनाव के मैंने संगीत का आनंद लिया।आज की शाम मैंने शास्त्रीय संगीत के कई दिग्गजों को सुना।अगर शुरूआत करनी हो तो निश्चय ही वो मेरे गुरु जी से होगी।
    तो सबसे पहले मैंने सुना अागरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान को  जो अपने घराने की गायकी की बारीकियों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का बख़ूबी निर्वाह कर रहे हैं आईटीसी एसआरए के माध्यम से।मैंने इनकी दमदार आवाज़ में राग पूर्वा की "मथुरा न जाइयों मोरा कान्हा सुना" तो एक अदभुत रूहानियत का अहसास हुआ।
राग पूर्वा एक शाम का बड़ा ही ख़ूबसूरत राग है। माना ऐसा जाता है की इस राग में ज़्यादातर श्रृंगार रस के गाने गाये जाते हैं। इसी राग में बाद में मैंने गुरु जी द्वारा गाई "पिया नवेला ना पाया" सुना, यह भी एक अद्भुत बंदिश है और गुरु जी की आवाज़ में हो तो इस से बेहतर क्या हो सकता है?
   अब आगे चलते हैं ग्वालियर घराने के पंडित ओमकर दादरकर के पास।इन्होंने अपनी संगीत की तालीम आईटीसी एसआरए के गुरु पं उल्हास कशलकर से ली है, जिनकी गायकी में आगरा, ग्वालियर और जयपुर घराने की छाप दिखाई देती है। मैंने इनके द्वारा गाया राग शंकरा सुना यूटूब पर जो की आईडिया जलसा(idea jalsa) के कार्यक्रम का था।इनकी मधुर और आकर्षित करने वाली आवाज़ के बारे में तो क्या कहूँ? हाल में ही मैंने इनको पूर्णिया में संगीत भास्कर राजकुमार श्यमानंद सिंह जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में सामने से सुना था।अभी ये आईटीसी एसआरए में गुरु हैं और अपने घराने की गायकी को अगली पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं।
  राग हंसध्वनि शाम का एक बहुत ख़ूबसूरत सा राग है।इस राग को कर्नाटिक शैली से हिंदुस्तानी गायकी में लाया गया है।इस राग के ज़्यादातर गाने भक्ति के होते हैं। इस राग को जब मैंने पटियाला घराने की विदुषी कौशिकी चक्रबर्ती की आवाज़ में सुना तो मन को एक अदभुत सुकून की अनुभूति हुई। इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा पं ज्ञान प्रकाश घोष से ली और बाद में अपने पिता पं अजय चक्रबर्ती से ली। पं अजय चक्रबर्ती आज के शास्त्रीय संगीत के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से एक हैं।वैसे पंडित जी पे बातें आगे की पोस्टों में करूँगा।
विदुषी कौशिकी चक्रबर्ती ख़्यालों के साथ-साथ ठुमरियों के लिए भी जानी जाती हैं।इनकी घराने की बेहद ख़ास ठुमरी "याद पिया की आए" भी सुनी मैंने इनकी मधुर और सुरीली आवाज़ में। इन्होंने कर्नाटिक शैली की संगीत की भी तालीम ले है पं बालमुरली कृष्ण से।
 आगे चलते हैं और बात करते हैं ग्वालियर घराने के एक विदुषी की -मीता पंडित की।
मैंने इनको आज से ५-६ साल पहले पूर्णिया के एक स्पिक मकाय के एक कार्यक्रम में सुना था।इनके द्वारा गायी भैरवी मैंने हाल में ही यूटूब पर सुना।अदभुत मधुर और मिठास है इनकी सुरीली आवाज़ में।
 मैंने युवा उस्तादों में सामने से श्री ब्रजेश्वर मुखर्जी जो पं अजय चक्रबर्ती के शिष्य हैं और श्री अलिक सेनगुप्ता,जो पं उल्हास कसलकर के शिष्य हैं, को भी सुना है।
  वैसे तो ऐसे कई दिग्गज युवा उस्तादों और विदुषियों से भरा पड़ा है हमारा देश, एक पोस्ट में सब पर चर्चा सम्भव नहीं। फिर मिलेंगे और संगीत पर बातें का सिलसिला जारी रखेंगे।।

Sent from my iPhone

No comments:

Post a Comment

Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...