Sunday, 9 April 2017

Sing to express not to impress...

"Sing to express not to impress"- These were the words of a legend who left us a few days back. I was awestruck by the news of the death of Vidushi Kishori Amonkar,one of the finest vocalist India ever produced. I have heard some of the veterans of classical music like Pt Jasraj, Ustad Rashid Khan, Pt Rajan Sajan Mishra, Vidwan TN Krishnan etc live but still I feel very unfortunate that I couldn't hear the legend Padma Vibhushan Kishori Amonkar live.  A person who didn't like interviews just because she thought that it was a waste of time and took her important time from her riyaz. A legend who was considered of the gold standards in the music. She learnt music from her mother, the legendary vocalist, Mogubai Kurdikar, of Ustad Alladiya Khan’s Jaipur Atrauli gharana. Her voice traveled three octaves and she delivered the micro notes (shruties) beautifully as per the tradition of her gharana. She considered that the music starts from a note and not from a raga. She considered music as a way to express herself. 
    I recently heard her singing ‘Pratham Sur Saadhe’ on youtube in raag Bhoop, a raag created by her. After listening to that I can definitely say one thing that sur was her sadhna. Vidushi Kishori Amonkar had a personal interest in ghazals. She was a great fan of the famous ghazal maestro Mehndi Hasan.
   Temperamental, a musical genius, purist, unparallel –Vidushi  Kishori Amonkar would be 85 today if she was living today. She left us almost a week ago and whole nation mourned on her death. She was a perfectionist and she would not leave the green room before the concert until the tanpuras were tuned to her satisfaction. She was awarded by Padma Bhusan in 1987, Padma Vibushan in 1987, Sangeet Natak Academy Award in 1985 and also the Sangeet Natak Akademi Fellowship in 2009. Vidushi Kishori Amonkar was also one of the seven artists who were awarded by the M.S. Subbulakshmi Award for classical music.
   At last on her birthday I pay my tribute to this great musical genius and artist. Though she has left us but she will always remain alive in the hearts of the music lovers across the globe through her music. Her music is immortal. Mahro Pranam!!

Saturday, 8 April 2017

गायक और गायकी- पं कुमार गंधर्व...

"उड़ जाएगा हंस अकेला" कभी आपने यह बंदिश सुनी है? पंडित जी की आवाज़ में अगर सुनी हो तो आप ख़ुद ही समझ सकते हैं की मैं आज कैसी गायकी पर बातें करने जा रहा हूँ।
       आज हिंदुस्तान के एक सर्वकालीन दिग्गज कलाकारों में से एक पं कुमार गंधर्व का जन्म-दिन है। वैसे तो वो अब हमारे बीच नहीं रहे किन्तु आज भी लोग उन्हें याद करते हैं उनके अलग गायन शैली को ले कर। क्योंकि उन्होंने अपनी गायन की एक अलग ही शैली बना ली थी इस कारण वे कई बार विवादों में

भी पड़े किंतु उनका ऐसा मानना था की वो एक रूढ़िवादी नहीं हैं और कुछ नया करना चाहते थे और इसी कारण उन्होंने कभी भी किसी घराने को नहीं अपनाया। उन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा पं बी॰आर डेओढ़र से ली थी।पंडित जी एक अदभुत गायक तो थे की किंतु उसके साथ-साथ वे एक म्यूज़िकॉलॉजिस्ट भी थे। पंडित जी ने ख़याल के साथ- साथ निर्गुण भजन,लोक गीत आदि भी अपने ही अन्दाज़ में गा कर लोगों को अभिभूत किया है।इन्हें १९८८ में पद्मा भूषण और १९९० में पद्मा विभूषण से नवाज़ा गया है।इन्होंने राग गांधी-मल्हार की रचना भी की है जिसे इन्होंने पहली बार महात्मा गांधी के शताब्दी वर्ष पर आयोजित एक कार्यक्रम में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में लोगों के सामने गाया था। पंडित जी का मानना था-"राग बन जाते हैं,बनाये नहीं जाते।" अब बातों को आगे बढ़ाते हुए पंडित जी की गायकी पर चर्चा करते हैं की वह कैसे अन्य गायकों से भिन्न था।
       लोगों का मानना है कि उनकी गायकी की यह विशेषता थी कि वे स्वर-लय से पूरी ईमानदारी रखते हुए भी, अपनी गायकी को आक्रामक बनाते थे। उनकी गायकी की एक और विशेषता यह थी कि उस समय के गायकों के अपेक्षा पंडित जी की तानें काफ़ी तेज़ थीं। उनकी आवाज़ तो सुरीली थी ही किंतु साथ-साथ तानों में उनकी चपलता अदभुत थी। मैंने जितना पंडित जी को सुना उस से मैंने एक बात ज़रूर समझी की वे अपने गायन में मुख्यतः मध्य लय का इस्तेमाल करते थे जिसके कारण पंडित जी श्रोताओं को तुरंत ही अपनी गायकी की ओर आकर्षित कर लेते थे। कुछ ही देर में मानो सारा वातावरण  संगीतमय हो जाता। पंडित जी अपनी गायकी में 'आ'कार का बहुत सीमित उपयोग किया करते थे और बोल-तान का भी ज़्यादा उपयोग नहीं करते थे।
   सबसे अच्छी बात जिसके कारण पंडित जी की गायकी की ओर लोग आकर्षित होते थे वह थी पंडित जी की बंदिशों की भावनाओं को गायन के साथ जोड़ना। जैसे जब वे राग मेघ-मल्हार में "रितु बरखा आई" गाते थे तो श्रोताओं को ऐसी अनुभूति होती थी जैसे वे बारिश में भीग रहे हों।
    ख्याल के साथ-साथ पंडित जी ने भारतीय संगीत के दो और प्रकार पर अपनी महारथ हासिल कर रखी है: तराना और टप्पा में। पंडित कुमार गंधर्व अपने आवाज़ के इस्तमाल करने के मामले में अब्दुल करीम खान साहब पर काफ़ी निर्भर थे। पंडित कुमार गंधर्व की बातें हों और उनके निर्गुणों की बातें न हों यह तो संभव ही नहीं। चाहे वो उनके द्वारा गाया गया-" उड़ जाएगा हंस अकेला" हो या "गुरु तो जीने" हो सब में ऐसा लगता जैसे ये बंदिशें इनके गले के लिए ही बनी हो।
   पंडित जी पर सारी बातें एक साथ कर पाना तो संभव नहीं। आगे फिर संगीत पर चर्चा जारी रखेंगे।।

Thursday, 6 April 2017

एक शाम पूर्वा से भैरवी तक...

परीक्षा ख़त्म हो गयी आज और आज कई दिनों बाद, बिना किसी तनाव के मैंने संगीत का आनंद लिया।आज की शाम मैंने शास्त्रीय संगीत के कई दिग्गजों को सुना।अगर शुरूआत करनी हो तो निश्चय ही वो मेरे गुरु जी से होगी।
    तो सबसे पहले मैंने सुना अागरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान को  जो अपने घराने की गायकी की बारीकियों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का बख़ूबी निर्वाह कर रहे हैं आईटीसी एसआरए के माध्यम से।मैंने इनकी दमदार आवाज़ में राग पूर्वा की "मथुरा न जाइयों मोरा कान्हा सुना" तो एक अदभुत रूहानियत का अहसास हुआ।
राग पूर्वा एक शाम का बड़ा ही ख़ूबसूरत राग है। माना ऐसा जाता है की इस राग में ज़्यादातर श्रृंगार रस के गाने गाये जाते हैं। इसी राग में बाद में मैंने गुरु जी द्वारा गाई "पिया नवेला ना पाया" सुना, यह भी एक अद्भुत बंदिश है और गुरु जी की आवाज़ में हो तो इस से बेहतर क्या हो सकता है?
   अब आगे चलते हैं ग्वालियर घराने के पंडित ओमकर दादरकर के पास।इन्होंने अपनी संगीत की तालीम आईटीसी एसआरए के गुरु पं उल्हास कशलकर से ली है, जिनकी गायकी में आगरा, ग्वालियर और जयपुर घराने की छाप दिखाई देती है। मैंने इनके द्वारा गाया राग शंकरा सुना यूटूब पर जो की आईडिया जलसा(idea jalsa) के कार्यक्रम का था।इनकी मधुर और आकर्षित करने वाली आवाज़ के बारे में तो क्या कहूँ? हाल में ही मैंने इनको पूर्णिया में संगीत भास्कर राजकुमार श्यमानंद सिंह जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में सामने से सुना था।अभी ये आईटीसी एसआरए में गुरु हैं और अपने घराने की गायकी को अगली पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं।
  राग हंसध्वनि शाम का एक बहुत ख़ूबसूरत सा राग है।इस राग को कर्नाटिक शैली से हिंदुस्तानी गायकी में लाया गया है।इस राग के ज़्यादातर गाने भक्ति के होते हैं। इस राग को जब मैंने पटियाला घराने की विदुषी कौशिकी चक्रबर्ती की आवाज़ में सुना तो मन को एक अदभुत सुकून की अनुभूति हुई। इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा पं ज्ञान प्रकाश घोष से ली और बाद में अपने पिता पं अजय चक्रबर्ती से ली। पं अजय चक्रबर्ती आज के शास्त्रीय संगीत के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से एक हैं।वैसे पंडित जी पे बातें आगे की पोस्टों में करूँगा।
विदुषी कौशिकी चक्रबर्ती ख़्यालों के साथ-साथ ठुमरियों के लिए भी जानी जाती हैं।इनकी घराने की बेहद ख़ास ठुमरी "याद पिया की आए" भी सुनी मैंने इनकी मधुर और सुरीली आवाज़ में। इन्होंने कर्नाटिक शैली की संगीत की भी तालीम ले है पं बालमुरली कृष्ण से।
 आगे चलते हैं और बात करते हैं ग्वालियर घराने के एक विदुषी की -मीता पंडित की।
मैंने इनको आज से ५-६ साल पहले पूर्णिया के एक स्पिक मकाय के एक कार्यक्रम में सुना था।इनके द्वारा गायी भैरवी मैंने हाल में ही यूटूब पर सुना।अदभुत मधुर और मिठास है इनकी सुरीली आवाज़ में।
 मैंने युवा उस्तादों में सामने से श्री ब्रजेश्वर मुखर्जी जो पं अजय चक्रबर्ती के शिष्य हैं और श्री अलिक सेनगुप्ता,जो पं उल्हास कसलकर के शिष्य हैं, को भी सुना है।
  वैसे तो ऐसे कई दिग्गज युवा उस्तादों और विदुषियों से भरा पड़ा है हमारा देश, एक पोस्ट में सब पर चर्चा सम्भव नहीं। फिर मिलेंगे और संगीत पर बातें का सिलसिला जारी रखेंगे।।

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Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...