वाणी प्रकाशन से प्रकाशित "गिरिजा" नामक पुस्तक जिसको की श्री यतीन्द्र मिश्र जी ने लिखा है, एक बेहद सरल और रोचक ढंग से लिखा विदुषी गिरजा देवी जी के व्यक्तित्व पर आधारित एक पुस्तक है।
विदुषी गिरजा देवी जी के व्यक्तित्व के कई आयामों के बारे में बताया है लेखक ने।पुस्तक में गिरजा देवी जी के पान खाने की आदत से ले कर, उनके बचपन की कई क़िस्सों तक की बातें की गई है।
शुरुआत में लेखक ने गिरजा देवी जी की बनारस वाली आवास का चर्चा किया है की वहाँ कैसा माहौल होता था जब गिरजा देवी जीं रियाज़ करती थीं अथवा अपने विद्यार्थियों को संगीत की तालीम दिया करती थीं।इस पुस्तक में इनकी गाई गयीं कई चर्चित बंदिशों की भी चर्चा है जैसे- अप्पा की गाई बहुप्रशंसित चैती- "एहीं ठैंया मोतिया हेराय गईली रामा, कहवाँ मैं ढूढूँ"।गिरजा देवी जीं जिन गायकों अवं गायिकाओं से प्रेरित थी उनमें डी॰वी॰ पलुसकर, केसरबाई केरकर, रसूलन बाई जैसे दिग्गज मजूद हैं। इस पुस्तक में गिरजा देवी ने यह भी बताया है की क्यों वे इन दिग्गजों से प्रभावित थीं। अप्पा के तालीम देने की तरीक़े के बारे में भी बताया गया है,कैसे वे बंदिश की अदाएगी के बारे अपने शिस्यों को बड़े प्यार से समझाती हैं।दादरा, टप्पा , ख़याल, ध्रुपद, धम्मार सभी विधाओं की तालीम देती हैं अप्पा। गिरजा देवी जीं के लिए कोई भी राग ज़्यादा प्रिय नहीं, किंतु वे राग भैरव को सबसे अधिक गातीं हैं। उन्हें भैरव में गाई जाने वालीं बंदिशें बेहद पसंद हैं। अप्पा को काशी प्रिय है और वे शिव जी की उपासिका हैं। और मान्यता ऐसी है की भगवान शिव की प्रिय राग भैरव है इसलिए गिरजा देवी जी को भी यह राग से काफ़ी लगाव है। गिरजा देवी जीं का मानना है कि गायन में भावों की सरलता ही उनकी गायकी को सबसे भिन्न बनाती है। ऐसी कई बातें हैं इस पुस्तक में विदुषी गिरजा देवी जीं के बारे में जो पहली बार हम जैसे संगीत-प्रेमी के सामने आयीं हैं इस पुस्तक के माध्यम से।
पुस्तक के अंतिम भाग में विदुषी गिरजा देवी जी से लेखक की वार्तालाप है, जिसमें अप्पा जी ने अपने बारे में कई रोचक बातें बताईं हैं। लोक गायन से लेकर शास्त्रीय गायक तक, गुरु- शिष्य परम्परा से लेकर अप्पा की पसंदीदा बंदिशों तक सभी पर चर्चा की गयी हैं इस वार्तालाप में।
हर संगीत प्रेमी को निश्चित ही इस पुस्तक को पढ़ना चाहिए। बहुत कुछ नया जानने को मिल सकता है इस दिग्गज विदुषी और शास्त्रीय संगीत के विषय में।।
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