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एक ने राग नट भैरव का चित्रण किया तो दूसरे ने राग माधवंती का।दोनों को एक साथ सुनकर एक अदभुत
आनंद मिल रहा था।एक मेवाती घराने से आते तो दूसरी जयपुर घराने से।ये दोनों एक साथ इतनी ख़ूबसूरती से गा रहे थे की ये एहसास भी नहीं हो रहा था कि दोनों अलग-अलग राग गा रहे थे।इतना ही नहीं दोनों अलग-अलग स्केल पर भी गा रहे थे और तो और दोनों को अलग-अलग संगतकार भी संगत कर रहे थे।जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ विधुषी अश्विनी भिड़े और पंडित संजीव अभ्यंकर की।गायन शुरू करने से पहले जानकारी देते हुए यह बताया की यह जुगलबंदी मूरछाना पद्धति पर आधारित है।
बाद मैं मैंने पं रतन मोहन शर्मा और गरगी सिद्धांत जी की जसरंगी जुगलबंदी सुनी।इन दोनों ने भी राग जोग और वृंदावनी सारंग का अनूठा मिलन किया है।
वैसे तो अभी ये नया प्रयोग है।देख़ये आगे यह कितना लोकप्रिय होता है संगीत रसिकों के बीच।
और भी चर्चा करूँगा संगीत पर लेकिन आज नहीं फिर कभी।।
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