Saturday 9 July 2016

कव्वाल साबरी से कैसी दुश्मनी?



२३ जून की सुबह अख़बार की इस ख़बर ने मुझे परेशान सा कर दिया।मैं विस्मित था,आहत था कि किसी कलाकार से, किसी संगीतज्ञ से किसी की कैसी बैर?

      संगीत कला तो ईश्वर की इबादत है।वास्तव में संगीत ईश्वर के क़रीब जाने का एक माध्यम है। संगीत कला का कोई सरहद नहीं होती है। इसे जाति, धर्म, देश, क्षेत्र में नहीं बांधा जा सकता।संगीत तो नदी की धारा की तरह अविरल है।यह तो आत्मा से परमात्मा तक पहुँचने का एक ज़रिया है।संगीत एक एक जुनून है,एक सुकून है और क़व्वाली तो सूफ़ी संतों की गायन की एक शैली है।

शुरूआत में तो क़व्वाली सिर्फ़ दरगाहों पर गाया जाता था पर आज यह साबरी बंधु जैसे गायकों के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
 फिर क्यों किसी ने अमजद साबरी जैसे अल्लाह के बंदे की आवाज़ से दुनिया भर के लोगों को महरूम कर दिया? भर दो झोली मेरी या मुहम्मद..., ताजदार-ए-हरम...और मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा...जैसी जुबां पर चढ़ी कव्वालियां इन्हीं साबरी
बंधुओं की देन है।अब ये आवाज़ फिर नहीं सुनाई देगी क्योंकि किसी ने अमजद साबरी की गोली मार कर हत्या कर दी है।अमजद साबरी मशहूर कव्वाल गुलाम फरीद साबरी के बेटे थे।सूफ़ियाना क़व्वाली के लिए जाने जाते थे साबरी।इन्होंने अपने पिता से ही गाने की तालीम ली थी।अमजद "साबरी ब्रदसॅ" के नाम से मशहूर पाकिस्तानी क़व्वाल घराने से ताल्लुक़ रखते थे।संगीत तो इन्हें विरासत में मिला और इन्होंने बड़े बख़ूबी इसे आगे पहुँचाया।संगीत की ख़िदमत इनका एक मात्र मिशन था।अमजद साबरी मशहूर कव्वाली गायक मकबूल साबरी के भांजे थे, जिनकी 2011 में मौत हो गई थी।मुझे तो ऐसा लगता इनका पूरा परिवार ही संगीत को समर्पित था।इन्होंने ने भारत और पाकिस्तान के अलावा यूरोप और अमेरिका में भी कई कार्यक्रम किए थे। उन्हें गायिकी की आधुनिक शैली के लिए कव्वाली का ‘‘रॉकस्टार’’ भी कहा जाता था।
साबरी अब भले ही हमारे बीच न रहे किंतु वो अपने क़व्वालियों के ज़रिए सदा हमारे दिल में रहेंगे।आज जब उनके द्वारा गाये गए क़व्वालियों को सुन रहा तो लगा की सच-मुच वे कितने दिल को अल्लाह को याद किया करते थे।।

No comments:

Post a Comment

Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...