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Friday, 1 July 2016

मन में बस गया... "भारत भवन"

मैं झील के किनारे बैठा हुआ हूँ।ठंडी-ठंडी हवा चल रही है और चारों ओर हरे-भरे पेड़।वातावरण में एक अजीब सी शांति और शकुन का एहसास हो रहा है।धीमी आवाज़ में सितार पर राग यमन की अलाप कानों में आ रही है।
एक ऐसी जगह जहाँ कला के हर प्रकार का वास है।ऐसी जगह जहाँ साहित्य भी है, जहाँ संगीत भी है।जहाँ नृत्य भी है, पेंटिंग भी है।जहाँ थियेटर भी है सिनेमा भी है।कहीं पंडित जसराज की मधुर आवाज़ भी गूँजती तो कहीं कथक की थिरकन तो कहीं भरतनाट्यम् की भाव का अहसास होता है।पांडवानी के रूप तीजन बाई की भी
उपस्थिति का अहसास है यहाँ पर।जहाँ कलाकारों की कला-कृतियाँ मन को अभिभूत कर रहीं है तो जहाँ जन-जन के कवि बाबा नागार्जुन की पंक्तियाँ भी सुनाई दे रही है।जी हाँ बात कर रहा हूँ मैं भोपाल में स्थित भारत भवन की।ये जगह मेरे लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है।जैसे जैसे मैं इस प्रांगन में घूम रहा हूँ वैसे-वैसे मुझे कई कलाकारों,कवियों,लेखकों,रंगकर्मियों की सुखद अहसास और अनुभूति हो रही है।
सबसे पहले मैं "रूपानकर" पहुँचा।ये भारत भवन का एक अंग है जो की माडर्न,लोक और जन-जातीय कला-कृत्यों का एक संग्रहालय है।इस संग्रहालय में कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी हो चुकें हैं अभी तक।जे स्वामिनाथम,के जी सुब्रमणीयम,हेन्री मोरे जैसे कई कलाकारों के प्रदर्शनी यहाँ आयोजित किए जा चुके हैं।
इसके बाद मैंने भारत भवन का रंगमंच पहुँचा-"रंगमण्डल"।यह रंगमंच नाटक जैसे कला,जो की लोगों के बीच से विलुप्त हो चुका है,को संजों कर रखने में एक बहुत बड़ा योगदान दे रहा है।१००० कार्यक्रम और ५० से भी ज़्यादा नाटकों के मंचन का साक्षी रह चुका है यह रंगमंच।पीटर ब्रुक,निरंजन गोस्वामी,तापस सेन जैसे कई दिग्गज यहाँ अपनी प्रस्तुति दे कर लोगों को अभिभूत कर चुके हैं।यहाँ समकालीन लेखकों के नाटकों की  भी
प्रस्तुति होती है तो सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ नाटकों का भी मंचन होता ही है।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी,बाबा नागार्जुन,शमशेर सिंह बहादुर जैसे कवियों के कविताओं में डूब गया है मन।जी हाँ मैं भारत भवन के भारतीय कवियों को समर्पित एक अंग "वगरथ" पहुँच चुका हूँ।१३००० से भी ज़्यादा कविताओं के पुस्तक से लैस, शायद ये अपने तरह का अकेला संग्रहालय होगा जहाँ इतने सारे कवियों की कविता किसी को एक जगह मिल सकती है।यहाँ पर कई बड़े कवियों और लेखकों के हस्त लिखित रचनायें भी रखी हुई हैं जो की अपने आप में अदभुत हैं।यहाँ पर कई बड़े कवि सम्मेलन का आयोजन होता ही रहता है।
अब मैं भारत भवन के उस अंग में आ पहुँचा हूँ जिसे देखने के लिए मैं सबसे ज़्यादा उत्सुक था।हाँ!! मैं पहुँच गया हूँ "अनहद"--यह भारतीय शास्त्रीय ,लोक और आदिवासी संगीत का केंद्र है।यहाँ कई प्रकार के संगीत सम्मेलन होते हैं जैसे-परम्परा,सप्तक आदि।अनहद अपने स्थापना से आज तक के गौरवमय यात्रा में कई दिग्गज कलाकारों की कला प्रस्तुति का साक्षी रह चुका है।चाहे वो पं जसराज हों या उस्ताद ज़ाकिर हूसेन या उस्ताद अल्लाह रखा हों या पं रविशंकर सभी के संगीत की गूँज सुनाई देती है यहाँ।अभी पिछले ही वर्ष यहाँ आगरा घराने पर एक संगीत गोष्ठी हुई था जिसमें मेरे गुरूजी उस्ताद वसीम अहमद खान को भी आमंत्रित किया गया था।
इसके बाद मैं "छवि" पहुँचा।यह भारत भवन का हाल में ही बना एक अंग है जो कि भारतीय सिनेमाओं के लिए एक केंद्र है।यहाँ पर कई राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित किए जा चुके हैं।
बहुत दिनों से इच्छा थी भारत भवन देखने की।वो आज पूरी हो गयी।मुझे इतना कुछ देखने के बाद ऐसा लगता
की शायद भारत में कोई दूसरा भारत भवन नहीं होगा।
सच-मुच भारत भवन अपने भारत नाम को साकार करता है।भारत के विविधताओं को संजो कर रखने और उसे लोगों के बीच पहुँचाने का काम भारत भवन पिछले कई दशकों बख़ूबी करता आ रहा है और यह आज भी जारी है।किसी कला प्रेमी के लिए यह किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं।।


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Music Has No Boundaries...

One thing which can’t be stopped from travelling to a different country without a visa or passport is- Art and Music. I will talk about ...