Tuesday, 7 June 2016

वर्षा ऋतु के रंग मल्हार के संग...

लोग कहते कि जब मियाँ तानसेन राग दीपक गाया करते थे तो दीपक प्रज्वलित होने लगती थी।जब वो राग मल्हार गाया करते थे तो बारिश होने लगती थी।मुझे ये तो नहीं पता कि ऐसा होता था या नहीं किंतु मैं अपने छोटे से संगीत के अनुभव से इतना ज़रूर कह सकता कि अगर आप ऐसा कोई राग किसी दिग्गज की आवाज़ में सुनें तो निश्चित आपको ऐसा लगेगा की दीये जल उठें हों या बारिश हो रही हो।मैं ऐसा बिलकुल नहीं कह रहा की सच-मुच की आग या पानी आपको देखेगी किंतु आपको ऐसा अहसास ज़रूर होगा।
   आज की ही बात ले लीजिए।मैं घर पर बैठकर आज उस्ताद राशिद खान साहब की राग मल्हार सुन रहा था।मुझे विश्वास है जब राशिद खान साहब "बिज़री चमके बरसे" गा रहें होंगे तो उनके मन में निश्चित ही बरसात वाली दिन का पूरा चित्रण होगा।उस राग के कुछ देर बजने के बाद वातावरण में एक अ
उस्ताद राशिद खान
दभुत ठंडक की अनुभूति होने लगी, ऐसा अहसास जैसे अभी कुछ की देर पहले ज़ोरों की बारिश हुई हो। राग मल्हार तो अपने आप में ही बड़ा मधुर और गम्भीर वातावरण पैदा करने वाला राग है, वो भी उस्ताद जी की अदभुत अदायगी इस राग की मधुरता पर चार चाँद लगा रहे थे।राशिद खान साहब रामपुर सहस्वान घराने से आते और इन्होंने अपनी संगीत की तालीम कई दिग्गज कलाकारों से ली है उनमें से उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा खान और उस्ताद निशार हूसेन खान प्रमुख हैं।इनकी गायकी के लिए इन्हें पद्मा श्री और भी कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।लीजिए मैं राग मल्हार की बात करता-करता उस्ताद जी की बात करने लगा।किंतु आज चर्चा सिर्फ़ और सिर्फ़ राग मल्हार पर उस्ताद जी की बातें फिर कभी।
   तो आइए आज बात करते हैं राग मल्हार की उसकी विशेषताओं की।सुखद संयोग तो देखिये अब जब लोगों को मानसून की पहली झमा-झम बारिश का इंतज़ार है तो ऐसे मैं राग मल्हार की चर्चा तो बनती ही बनती है।
उस्ताद शफ़ी अहमद खान
यह राग हिंदुस्तानी के साथ -साथ कर्नाटिक संगीत में भी गाया जाता है।मधायामावती, नाम से जाना जाता है यह राग कर्नाटिक शैली में।एक बहुत ही ख़ास बात मैं बताना चाहूँगा यहाँ-हमारा राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' भी राग मल्हार में ही गाया गया है।अभी मैं कोलकाता प्रवास कर रहा हूँ और अपने गुरूजी, आगरा घराने के उस्ताद वसीम अहमद खान से तालीम लेने के क्रम में।मौसम ख़ुशनुमा है और बातों बातों में बात राग मल्हार पर चली तो गुरूजी ने उसके बारे में काफ़ी कुछ बतलाया।रामदासि मल्हार,सूरदासि मल्हार,मेघ मल्हार कुछ मल्हार के ऐसे प्रकार हैं जो की काफ़ी प्रसिद्ध हैं इस अदभुत घराना का।मैं यहाँ पर विशेषकर ये बताना चाहूँगा की राग मेघ मल्हार विशेषकर आगरा घराने के गायकों द्वारा गाया जाता है बाक़ी घरानों में इस राग को राग मेघ के नाम से गाया जाता।अगर राग मल्हार की आलपचारी आगरा घराने वालों की हो तो फिर तो क्या कहने! बंदिश की ख़ूबसूरती और भी बढ़ जाती।इतने में गुरुजी ने आगरा घराने की एक ख़ास बंदिश अपनी दमदार आवाज़ में गुन-गुनायी "रिमझिम रिमझिम मेहा बरसे"-(यह बंदिश उनके गुरूजी उस्ताद शफ़ी अहमद खान साहब द्वारा रचित है)तो चारों ओर बादल ऐसे आ गाये जैसे यह बंदिश उनके लिए आमंत्रण हो।"आए आती धूम धाम" उस्ताद फ़ैयाज़ खान साहब की बहुत ही लोकप्रिय बंदिश है राग मेघ मल्हार में है।
   अब बात करते हैं ग्वालियर घराने की।ग्वालियर घराने की संगीत परम्परा तो सदियों पुरानी है।राजा मानसिंह तोमर या उससे पहले से ही चली आ रही इस घराने ने कई नायाब संगीतकार दिए हमारे देश को।बैजू बावरा, कर्ण और महमूद जैसे दिग्गज इसी घराने से आते।इन तीनों ने हमें एक नई प्रकार की मल्हार दी जो की बिक्शु की मल्हार, धोन्डिया की मल्हार और चाजू की मल्हार के नाम से मशहूर हुई।  ग्वालियर घराने के उस्ताद अब्दुल रशीद ख़ान की आवाज़ में राग ग़ौड मल्हार में "बादर बरसवे बरसात" से मन को एक ग़ज़ब की अनुभूति हुई।इस महान संगीतकार के तो बारे में क्या कहूँ।अपनी १०८ वर्ष की गौरवमयी जीवन में ४००० ठुमरियों से भी ज़्यादा ठुमरियाँ रची है इन्होंने जिसके कारण इन्हें रसन पिया के नाम से भी जाना जाता।
पं अजय चक्रबर्ती

           मेरी इस राग में और रुचि बढ़ी तो ढूँढते ढूँढते  मैं पटियाला घराने के पंडित अजय चक्रवर्ती की मधुर आवाज़ में राग मल्हार के झपताल में गरजे घटा घन कारे कारे पावस रुत आई...’ और उसके बाद द्रुत लय तीनताल में निबद्ध पण्डित ज्ञानप्रकाश घोष की रचना- ‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’ तक पहुँच गया।सच मुच वातावरण में एक बरसात की ठंडक की एहसास होने लगी इन दोनों की आवाज़ सुन कर।

राग मल्हार तो ऐसा राग है जिसपे जितनी चर्चा की जाए कभी ख़त्म ही ना हो।आगे मिलेंगे और राग मल्हार के प्रकार और उनमें कुछ ख़ास बंदिशों पर चर्चा करेंगे। अभी तो वर्षा ऋतु की आगाज ही हुई है।













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