Tuesday 31 May 2016

एक शाम बस संगीत के नाम....

विदुषी किशोरी अमोनकर
परीक्षा ख़त्म हो चुकी है और लम्बी छुट्टियों की आगज हो चुकी है।अब पढ़ाई का कोई बोझ नहीं,कोई तनाव नहीं।आज ना तो मुझे पापा को पढ़ाई की हिसाब देने की जरुरत है और न मम्मी की ये आवाज़ आने की डर की पढ़ाई करने बैठो।आज शाम तो बस शास्त्रीय संगीत के राग-रागनियों का आनंद लेने का होता है। उनमें डूबने का होता है।
                 संध्या बेला है तो शुरुआत तो राग यमन से ही होनी है। वो भी विदुषी किशोरी अमोनकर की आवाज़ में।पद्मा विभूषण किशोरी अमोनकर जी जयपुर घराने से आती हैं।इस घराने में गमक वाली तानें और मींड के साथ अलाप ख़ासियत है।वाह! क्या अदभुत,मधुर,सुरीली आवाज़ है विदुषी किशोरी अमोनकर जी की ।कोई भी सुने तो बस सुनता ही रह जाए। राग यमन के बारे में तो ऐसा कहा जाता की किसी गायक की गायकी का पता उसके राग यमन की अदायगी से चल सकताहै राग यमन की सम्पूर्ण अदाएगी वो भी" सखी ऐरी आली पिया बिन " जैसी बंदिश,  किशोरी  अमोनकर जी की आवाज़ में हो तो इससे बेहतर शाम की शुरुआत क्या हो सकतीहै।किशोरी अमोनकर जी ने अपनी संगीत की शिक्षा भेंडि बाज़ार घराने के अंजनीबाई मलपेकर जी से ली हैं।इनकी आवाज़ तो ऐसी की फ़िल्मी दुनिया भी इनकी आवाज़ से अछूती न रही।१९६४ की फ़िल्म गीत गाया पत्थरों ने और १९९० की फ़िल्म दृष्टि में इन्होंने गाने गाये हैं जो कि आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।
      अगली बारी भी आती जयपुर घराने की ही विदुषी अश्विनी भिड़े की ।ओह! इनकी दिव्य आवाज़ की तो क्या कहने।राग बागेश्वरी बहुत जंच रहा था इनकी आवाज़ में।वैसे इनकी गायकी में कुछ हद तक मेवाती और किराना घराने की गायकी की छाप आती इस कारण इनकी गायकी का की एक अलग की शैली है।इन्होंने
विदुषी अश्विनी भिड़े
अपनी संगीत की शिक्षा जयपुर घराने के पंडित रत्नाकर पाई से ली है।अपनी गायकी और मधुर आवाज़ के बदौलत इन्होंने कई बड़े संगीत समारोहों में अपनी गायन से लोगों को अभिभूत किया है।राग बागेश्वरी का विरह और श्रृंगार  रस को विलंबित एकताल में "कौन गत भई" और द्रुत में "ऐरी माई साजन नहीं आए"जैसी बंदिशों में अदभुत रूप से पेश  किया है इन्होंने।

शाम को और आगे बढ़ाते हैं और चलते हैं राग जयजयवंती की ओर वो भी बनारस घराने के पंडित राजन साजन मिश्र की आवाज़ में।
बनारस घराने की तो ख़ासियत ऐसी की उत्तर भारतीय लोक संगीत की छाप भी  दिखायी देती इसमें।इन दोनों की आवाज़ इतनी मीठी की कोई भी इन दोनों के आवाज़ से अभिभूत हो जाए।चाहे इनकी आवाज़ में ख़याल हो या हो ठुमरी या टप्पा या तराना सब में लगता जैसे इन दोनों को महारथ हासिल हो।इनको इनकी अदभुत
पंडित राजन साजन मिश्र
गायकी के लिए पद्मा भूषण से भी नवाज़ा जा चुका है।राग जयजयवंती,जिसे अक्सर लोग एक जटिल राग के रूप में देखते पर इनकी आवाज़ में "ऐसों नवल लाड़ली राधा"।सच मुच कितने दिल से गाते ये दोनों बनारस घराने के दिग्गज। 


ऐसी किसी की चाहत न होगी कि ऐसी शाम का अंत हो।संगीत तो ऐसी होती की इसको जितना सुनो उतना और सुनने का मन करता,उतना और डूबने का मन करता।
फिर मिलते हैं और चर्चा करते हैं संगीत पर।।


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