Wednesday 11 May 2016

आज करते हैं लोकनृत्य की बात !

Padma Bhusan Teejan Bai
शास्त्रीय संगीत के साथ मुझे नृत्य से भी लगाव है, खासकर पांडवानी नृत्य शैली का नृत्य। आप लोगों को पता ही होगा कि पांडवानी छत्तीसगढ़ का एक परम्परागत  लोक कला शैली है। इस शैली के नृत्य की बात करने पर मुझे तीजन बाई  की याद आती है। 

पाँच साल पहले की बात है। स्पिक मैके के एक कार्यक्रम में पद्मभूषण तीजन बाई को देखने का मुझे मौक़ा मिला था। 

अब चलिए, पांडवानी शब्द में हम डूबने की कोशिश करते हैं। पांडवानी का अर्थ ही पांडव की वाणी। इस शैली में नृत्य के साथ महाभारत की कथा बांची जाती है इस नृत्य में जो मुख्य कलाकर होता वो इस प्रकार इस नृत्य को प्रस्तुत करता की ऐसा लगता वो महाभारत की कथा का चित्रण कर रहा हो। मुझे  तीजन बाई जी की प्रस्तुति को देखकर बहुत ही अच्छा लगा। 

ग़ौरतलब है कि तीजन बाई को १९८८ में पद्मश्री और २००३ में पदमभूषण से नवाज़ा गया । तीजन बाई के नृत्य शैली में रूचि बढ़ने के बाद से ही मैंने भारत में एसे अन्य लोक कला शैलियों को समझने की कोशिश की।  


 छतीसगढ के बाद मैं असम की लोककला से आपको रूबरू कराना चाहूँगा। असम सिर्फ एक प्रदेश का नाम नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, विभिन्न संस्कृतियों इत्यादि की झलक का प्रतीक है। असम की ढेर सारी संस्कृतियों में से एक बिहू एक ऐसी परंपरा है जो यहां की
Bihu Dance 
 गौरव है।


इस नृत्य की ख़ासियत इसकी फुरतिलि नृत्य मुद्राएँ हैं। वैसे तो असम  में एसे कई लोक नृत्य एवं संगीत के प्रकार की भरमार है किंतु बिहु इनमे से सबसे प्रमुख है।असम का नाम लेते ही मैं स्वर्गीय भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में खो जाता हूं। 

भूपेन दा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वो एक प्रसिद्ध असमिया भाषा के गीतकार , संगीतकार और गायक थे।इनके आवाज़ में " ओ गंगा तू बहती है क्यों " एक बहुत ही लोकप्रिय गाना है ।


 अब चलिए बंगाल।आज भी वहाँ की संस्कृति बिलकुल सुरक्षित है। यहाँ की छऊ नृत्य झारखंड और उड़ीसा में भी प्रसिद्ध है किंतु इस नृत्य की उत्पत्ति बंगाल के पुरुलिया ज़िले से मानी गयी है। इस नृत्य की प्रस्तुति ज़्यादातर क्षेत्रिय त्योहारों में होती है। परम्परागत या लोग गीत के धुन पर इस नृत्य की प्रस्तुति की जाती है। नृत्य में कभी कभी रामायण या महाभारत के घटनाओं का भी चित्रण होता है। 
Folk dance of bengal


  अब झारखंड की बात। नृत्य और संगीत झारखंड के जन-जाति की प्राण है। यहाँ के आदिवासियों के भी पाँव, ताल और लय में चलते।यहाँ के लोग अगर किसी ख़ास मौक़े पर मिलते हैं तो वो लोग परम्परागत नृत्य अथवा संगीत की प्रस्तुति करते हैं । सडनी , दमकच, कली जनानी आदि यहाँ के कुछ प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं। 
   

इसके बाद बात घूमर की , ये राजस्थान का लोक नृत्य है। भील जन जातियों द्वारा स्थापित ये नृत्य आज लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। जैसा कि हम जानते हैं राजस्थान अपने रेगिस्तान के लिए जाना जाता है यहाँ के लोगों को पानी की हमेशा से थोड़ी दिक़्क़त रही है । यहाँ के लोग गीत पनिहारी गाते हैं जो कि विशेष रूप से पानी और कुओं का वर्णन करता है । राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोक गायकों में से एक बीकानेर घराने की अल्लाह जीजा बाई हैं ।ख्वाजा मेरे ख्वाजा और  रंगिलों
Rajasthani Folk song
मारो धोलना जैसे फ़िल्म के गाने भी राजस्थान के लोक संगीत पर आधारित है।


 केरल की पदायनी जो की सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है हमारे दक्षिणी भारत की उसकी तो बात ही कुछ और है । केरल तो अपने लोग संगीत के लिए भी जाना जाता है । इस राज्य को हम सोपान संगीथम के नाम से भी जानते हैं । सोपान संगीथम हमारे शास्त्रीय संगीत से जन्मा जिसकी उत्पत्ति यहाँ की मंदिरों से मानी जाती है।

आब बात उस क्षेत्र की बात जहाँ से मैं आता हूँ यह भूमि सांस्कृतिक रूप से बहुत ही उर्वर रही है और विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक  अवसरों के लिए अलग अलग प्रकार की लोक गीत प्रचलित हैं।इस क्षेत्र की एक पर्व जिसे सामा चकेवा कहते हैं जिसे हिंदी के कार्तिक माह में मनाया जाता है इस अवसर पर सामा चकेवा के गीत गाए जाते हैं। माँगलिक अवसरों पे गायी जाने वाली महेशवाणी , शिशु के जन्म पे गाये जाने वाली सोहर, विवाह के अवसर पर समदाओन जैसे अनेक प्रकार की गीत संगीत अलग अलग अवसरों के लिए प्रचलित हैं । अभी हाल में ही मुझे गीत-नाद मिथिलाक धरोहर शैली दीदी ( सुश्री शैली सिंह) की गायी हुई पारम्परिक सुर  ,लय, ताल में सजी हुई और उनकी सधी हुई आवाज़ में सुनकर मन ख़ुश हो गया। 

नृत्य- गीत की बातें आज इतनी ही, फिर मिलते , बातें करते हैं।

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