Sunday, 22 May 2016

आज बातें आगरा घराना की...


आज मैं बात करूँगा एक अद्भुत घराने की। एक ऐसा घराना जिससे कई दिग्गज आते हैं। वही घराना, जिससे मेरे गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान आते हैं। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ शास्त्रीय संगीत के समृद्ध घरानाओं में से एक "आगरा घराने की"

वैसे तो शास्त्रीय संगीत में कई घराने हैं पर आज बातें सिर्फ़ और सिर्फ़ आगरा घराने की।

माना ऐसा गया है कि अलखदास और मूलकदास इस घराने के पहले संगीतकार थे।वैसे हाजी सुजान खान ने बाद में आगरा घराने को पूर्णत: स्थापित किया।खुदा बक्श ,ग़ुलाम अब्बास खान और कलाम खान जैसे संगीतकारों ने इस घराने को आगे बढ़ाया।

ग्वालियर घराने की ख़याल गायकी से मिलती जुलती गायकी इस घराने की पहचान है।आपलोग के मन में ज़रूर ये सवाल आया होगा  कि ग्वालियर गायकी से मिलती है आगरे की गायकी क्यों मेल खाती है?

उस्ताद फ़ैयाज़ खान
जब मैंने यही सवाल अपने गुरु जी से पूछा तो उन्होंने मुझे बताया की खुदा बक्श ने नाथान पीरबक्श से ख़याल गायकी की तालीम ली थी जो ग्वालियर घराने से आते थे। इस घराने की सारी ख़ूबियों को बताना तो सम्भव नहीं किंतु कुछ की चर्चा मैं अवश्य करूँगा।

ध्रुपद गायकी से मिलती जुलती नोम-तोम अलाप से गायन की शुरुआत फिर ध्रुपद गायकी से मिलती विलंबित ख़याल इस घराने की पहचान है।

द्रुत ख़याल गायकी में बोल तान ,खुली और बुलंद आवाज़ आगरा घराने के संगीतकारों की पहचान हैं।खुली आवाज़ से मुझे एक वाक़या याद आ रहा जिससे मैं आपलोगों को अवगत करना चाहूँगा। मेरे गुरूजी एक बार भागलपुर आए हुए थे स्वर्गीय राजकुमार श्यामानन्द सिंह के जयंती पर।उस कार्यक्रम में माइक की व्यवस्था न होने के वाबजूद भी दूर बैठे लोग उनके गायन को सुन पा रहे  थे।
 उस्ताद अता हुसैन खान


वैसे तो कई दिग्गज कलाकार थे अथवा हैं इस घराने से लेकिन मैं उनमें से कुछ की बात करूँगा यहाँ।आफ़ताब-
ऐ-मौसिकी नाम से प्रसिद्ध उस्ताद फ़ैयाज़ खान आगरा घराने के सबसे प्रमुख गायकों में से एक हैं।इन्होंने कई
ठुमरियाँ भी रची इसलिए इन्हें प्रेम पिया के नाम से भी जाना जाता है।इनके प्रमुख शगिर्दों में से उस्ताद अता हुसैन खान एक हैं। मैंने अपने गुरूजी से इनकी चर्चा बहुत सुनी थी।पंडित भटखंडे जी ने तो अता हुसैन खान साहब को  "संगीत -के- रत्न तक कह डाला था।जब मैंने इनकी आवाज़ में जौनपुरी राग की "पढ़ये वाके गाये ना सजनी" बंदिश सुनी तो मेरा मन रोमांचित हो उठा।      
पंडित यशपाल


आज मैंने नेट पर उस्ताद फ़ैयाज़ खान साहब की भैरवी में "बनाओ ना बातियाँ चलो काहे को झूठी" सुनी तो मुझे अचानक अपने गुरु जी उस्ताद वसीम अहमद खान की आईटीसी एसआरए की बुधवार सभा में गायी यही बंदिश की याद आयी।

वाह! दो अलग -अलग समय के दिग्गजों की दमदार आवाज़ में इस बंदिश को सुनकर एक अदभुत अनुभूति हुई।अगर मैं बात करूँ आज के आगरा घराने कीसंगीतकारों की तो पंडित जितेंद्र अभिषेकि,विदुषी सुब्रा गुहा,उस्ताद वसीम अहमद खान ,पंडित देवाशीष गांगुली,पंडित विजय किचलू ,पंडित यशपाल के नाम मेरे मन में आते।

मैं ख़ुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि कहीं न कहीं इस अद्भुत घराने से जुड़ गया हूँ।

उस्ताद वसीम अहमद खान
आगे और भी घराने की चर्चा जारी रहेगी अगली मुलाक़ातों में।

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