Friday 27 May 2016

आज बातें कुछ सदाबहार गानों की...

मेरे लिए संगीत का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ शास्त्रीय संगीत होता था।कई लोगों ने मुझे कहा कि फ़िल्मी गीत भी गाऊँ।पर मैं तो बस शास्त्रीय संगीत में ऐसा रच-बस गया था कि कुछ और सुनने का भी मन नहीं करता था।
आज सुबह जब मेरी आँखें खुली  तो मुझे एक बहुत ही मधुर आवाज़ में "हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते" सुनने को मिला।

बेगम परवीन सुल्ताना
सच -मुच इस गाने को सुन कर मुझे इस गाने से प्यार हो गया था।बाद में यह पता चला की इस गाने के संगीतकार आर डी बर्मन थे और यह गाना फ़िल्म क़ुदरत से था।इस गाने को और किसी ने नहीं बल्कि पटियाला
घराने की विख्यात गायिका बेगम परवीन सुल्ताना ने गाया है। मुझे आज भी याद है जब मैं आज से ४ वर्ष पहले आईटीसी एसआरए के वार्षिक सम्मेलन में बेगम साहिबा को लाइव सुन रहा था तो लोग किस तरह इस  को सुनने की फ़रमाइश उनसे कर रहे थे।उनके महज़ इस गाने को गुन-गुनाने से पूरी महफ़िल की फ़िज़ा ही बदल गयी थी।हमें तुमसे प्यार कितना गाने को किशोर कुमार जी ने भी गाया है जो कि काफ़ी लोकप्रिय हुआ है।बाद में मैंने हिंदी फ़िल्मों के गाने के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरु कर दी।तो चलिए आज हमलोग वैसे गानों में डूबते हैं जो की काफ़ी हद तक शास्त्रीय संगीत और इसके  रागों पर आधारित हैं।अब फ़िल्मों की गानों की बात हो तो भारत रत्न लता मंगेशकर जी का नाम ख़ुद ब ख़ुद ज़हन में आता।

भारत रत्न लता मंगेशकर जी
लता मंगेशकर,ये नाम  सुनते ही कानों में एक मीठी,मधुर,सुरीली आवाज़ गूँजने लगती है।न जाने कितने सूपरहिट
गानें दिए इन्होंने संगीत जगत को।फ़िल्म सीमा से "मनमोहना बड़े झूठे "जिसमें शंकर जयकिशन जी ने राग जयजवंती को बख़ूबी इस्तेमाल किया है जो की गाने की सुंदरता को और भी बढ़ाता है।राग बागेश्वरी में राधा ना बोले रे फ़िल्म आज़ाद से,राग भोपाली में ज्योति कलश चलके -भाभी की चूड़ियाँ फ़िल्म से और न जाने कितने ऐसे गाने गाएँ होंगे लता जीं ने अपनी मधुर आवाज़ मे ।रफ़ी साहब की आवाज़ में "मधुबन में राधिका नाचे रे"जो की राग हमीर पर आधारित है ,के न जाने कितने लोग दीवाने होंगे।अक्सर लोग इस गाने को गुन-गुनाते मिल जाएँगे आपको।अगर बात करूँ में मन्ना डे साहब की तो फ़िल्म नरसि भगत में उनके और हेमंत कुमार जी द्वारा गाया गया "दर्शन दो घनश्याम' सुनते ही मन में एक गजब की रुहानियत पैदा होती  है।मन्ना डे साहब की राग अहिर भैरव में "पूछो ना कैसे मैंने रैन बितायी'  जो की फ़िल्म "मेरी सूरत तेरी आँखें",की चर्चा किए बिना में मैं कैसे आगे बढ़ सकता।वाह! क्या संगीत दी थी एस डी बर्मन और मन्ना डे की जोडी ने।
रफ़ी साहब

राग मल्हार में गाया गया "गरजत बरसत सावन आयो रे" सुमन कल्याणपुर और कमल बारोत जो की बरसात की रात (१९६०)फ़िल्म से है।इसे भी लोगों ने काफ़ी पसंद किया है।                                                        
              इंद्रधनुशी आवाज़ में रंगी रामपुर सहस्वान घराने के उस्ताद राशिद खान साहब के आवाज़ में "आओगे जब तुम सजाना"गाने की तो बात ही न पूछये।इतनी दमदार आवाज़ में गाया हुआ यह मधुर गीत मन में एक अजीब शकुन पैदा करता है।यह गाना फ़िल्म जब वी मेट से है।
     ये विडम्बना तो देख़ये ये लोकप्रिय गाने हर कोई गुन-गुनाते मिल जाएँगे और साथ में ये मिथक पाले की शास्त्रीय संगीत को समझना और सुनना उनकी बस में नहीं है।

 संगीत की संगत तो अदभुत रुहानियत का एहसास देती है जहाँ रुहानियत हो उसे समझा नहीं एहसास किया जाता,डूबा जाता आनंद आनंद लिया जाता इसके राग -रागीनियों की ।समझ तो बाद में आनी ही है।।



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